Saturday, July 20, 2013

मेडिकल कॉलेज का बरगद का पेड़

नमस्कार दोस्तों,
दोस्तों हर किसी के जीवन में कोई न कोई एक ऐसी घटना जरुर होती है जिसे वो अपने जीवन में सबसे बुरा समय मानता है। लेकिन किसी न किसी रूप में कोई न कोई हमेशा उन परिस्थितियों में मदद के लिए पहुँच जाता है।

मैं आज आप लोगों के सामने एक ऐसी ही घटना का उल्लेख करने जा रहा हूँ। ये घटना मेरी मौसी के बेटे जिनका नाम अजय है उनके साथ घटी थी। वो मेरे बड़े भाई हैं और ये घटना भी काफी पहले की है जब वो करीब आठ साल के रहे होंगे। तब मौसी कानपूर मेडिकल कॉलेज के पास हेलेट में रहती थीं। भईया के दादा जी काफी जाने माने इन्सान थे वहां की अच्छी खासी हस्तियों में उनका नाम था। आज़ाद मैगज़ीन कार्नर के नाम से उनकी किताबो की अच्छी खासी दुकान थी और न्यूज़ पेपर के कानपुर में सबसे बड़े हॉकर थे। उनका नाम कुछ और ही था मगर वहां सब उन्हें आज़ाद के नाम से जानते थे।

आज़ाद के नाम से प्रसिद्ध वो व्यक्ति, अपनेपन, उदारता और सोम्य व्यवहार की परिभाषा थे। मैं भी उन्हें दादा जी ही कहता था और वो मुझे भी उतना ही प्यार करते थे जितना के अपने पोतों को करते थे। हेलेट में रहने के कारण वो लोग कानपुर मेडिकल कॉलेज के बहुत पास रहते थे। अजय भईया और उनके बड़े भाई अक्सर मेडिकल कॉलेज के पार्क और बगीचों में खेलने जाया करते थे। वहां के लोगो के साथ अच्छे व्यव्हार की वजह से उन्हें कभी कोई मना नहीं करता था।

रोज़ के जैसे ही दिन चल रहे थे दिवाली आने को थी और बच्चो की छुट्टियाँ चल रही थी। दोनों भईया उस दिन साइकिल से खेल रहे थे बड़े भईया ने अजय भईया को पीछे बैठा रखा था। और वो दोनों वहीँ मेडिकल कॉलेज से थोड़ी दूर पर ही साइकिल से घूम रहे थे। फिर घुमते हुए मेडिकल कॉलेज के पास आ गए। वहां पर बड़े भईया साइकिल से उतर गए और वहां के एक अंकल जो की पहचान के थे उनसे कुछ बात करने लगे। साइकिल खड़ी थी और उस पर पीछे की सीट पर अजय भईया अभी भी बैठे थे। अभी पांच मिनट ही हुए होंगे के अचानक अजय भईया साइकिल समेत निचे गिर पड़े। वो अंकल और बड़े भईया उनके पास आये उन्हें उठाया मगर वो बेहोश हो चुके थे। दोनों सोचा के शायद संतुलन खोने की वजह से गया और वो उन्हें उठाकर घर ले आये। घर आने पर मौसी जी उनके मुंह पर पानी वगेरह छिड़का मगर उन्हें कोई होश नहीं आ रहा था। अचानक उनकी सांसे उखड़ने सी लगी और वो लम्बी लम्बी सांसे लेने लगे।

अजय अजय! सब आस पास उन्हें उनके नाम से बुलाये जा रहे थे मगर उनकी तरफ से कोई जवाब नहीं आ रहा था और आंखें भी नहीं खुल रही थी। मेडिकल कॉलेज पास ही था इसलिए बिना देर किये वहां मौजूद सब लोग वो अंकल, मौसी और मौसा जी भी भईया को लेकर सीधा इमरजेंसी में पहुंचे। डॉक्टरों ने साडी पूछ ताछ की। और सबको बाहर करके जांच में लग गए। सर पर कोई चोट नहीं थी और न ही शरीर पर छोटी खरोंचो के सिवा कोई बड़ा ज़ख्म दिखा। सांसे फिर उसे उखड़ने सी लगी और डॉक्टर ने ऑक्सीजन देने के मास्क लगा दिया। सांसे फिर भी कोई ख़ास काबू में नहीं आई। थोड़ी थोड़ी देर में उखड़ने लगती और फिर जब प्रेशर बढाया जाता तो साधारण हो जाती। डॉक्टरों को बेहोशी की वजह का कोई पता नहीं चल रहा था। इसलिए उन्होंने इमरजेंसी एक्सरे करवाया वो भी नार्मल था बिलकुल भी कहीं से कोई खराबी नहीं दिखी।

वहां दूसरी तरफ एक आदमी दौड़ा दौड़ा गया और दादा जी से बोल दिया की "आज़ाद जी आपका पोता अस्पताल में है और बहुत सीरियस है।"

उन्होंने बिना किसी देर के दुकान में बिना ताला लगाये केवल शटर गिराया और सीधा मेडिकल कॉलेज पहुँच गए। वहां सब उन्हें जानते थे इसलिए उन्हें किसी से भी अपने पोते के बारे में पूछने की जरुरत नहीं पड़ी। डॉक्टर खुद आये और साड़ी परिस्थितियों से अवगत कराते हुए उन्हें भईया के पास ले गए। हालत काफी नाज़ुक बता कर ५ -७ डॉक्टर लगातार निगरानी में लगे थे। दिल की धड़कन मशीन में अपनी सीमा पर पहुचने लगी थी और मशीन की आवाज़ ने हालत बयां करनी शुरू कर दी थी। डॉक्टर ने सबको बाहर कर दिया अबतक मेरे मामा जी लोग भी वहां पहुँच चुके थे।

दादा जी रिसेप्शन के पास गए और अपने पहचान के डॉक्टरों को फ़ोन कर दिया। कुछ दस मिनट के बाद ही वहां पर ५ डॉक्टर और आ गए जो की उस मेडिकल कॉलेज के प्रोफेसर थे। दादा जी ने मिलकर उन्हें पहले सारी बात बताई। वो उन्होंने ने ध्यान से सुना और फिर बिना देर किये उस वार्ड की तरफ बढ़ गए जहाँ भईया को रखा गया था। उनके दरवाजा खोलने से पहले ही अन्दर से बाहर आ रहे डॉक्टर ने दरवाजा खोल और प्रोफेसर को देखते ही कहा की "सर कोई फ़ायदा नहीं है, लड़का मर चुका है।"

हलाकि ये बात उसने धीरे से कही लेकिन दादा जी ने ये बात सुन ली और घबरा कर तेज़ तेज़ से रोने लगे। बाकि डॉक्टर और प्रोफेसर ने उन्हें संभाला और फिर उनमे से एक प्रोफेसर जिन्हें सब प्रोफेसर त्यागी के नाम से जान्ते थे। उन्होंने खुद भईया को चेक करने को कहा और उनके साथ बाकि के ३ प्रोफेसर वार्ड में सहायक डॉक्टरों के साथ चले गए और बाहर एक प्रोफेसर अभी भी दादा जी के साथ थे और उन्हें समझा रहे थे के प्रोफेसर को जांच करने दो ईश्वर ने चाहा तो सब ठीक हो जायेगा। मौसी जी को तब तक मौसा जी और मामा जी ने घर भेज दिया था वरना न जाने उनकी क्या हालत होती?

अन्दर से आने वाली प्रोफेसर की आवाजें वहां मौजूद लोगो की सांसो को ऊपर नीचे होने पर मजबूर कर रहीं थीं।
"देखो धड़कन चली क्या?"
"ठीक से यहाँ दबाव बनाओ। अब बताओ।"
"पैरो को देखो हिलते हैं या नहीं?"
"जान है जान है। देखो थोडा हिल इसका हाथ।"
इस तरह के आवाजें लगातार सांसे ऊपर नीचे करती जा रही थी। फिर अचानक सरे प्रोफेसर शांत हो गए और करीब दस मिनट तक कोई आवाज़ नहीं आई। किसी उन्होनी की आशंका ने सारी उम्मीदों को पीछे छोड़ दिया था, तभी प्रोफेसर त्यागी बाहर आये और बताया की "बच्चे को कुछ नहीं हुआ है आज़ाद जी, बस प्रार्थना कीजिये की वो जल्दी ठीक हो जाए।"

इस बात से सबको राहत मिली थी मगर अभी भी प्रार्थना जारी थी। प्रोफेसर भी इस बात से बहुत परेशान थे के जब सारी रिपोर्ट और एक्सरे सामान्य हैं तो फिर इतनी सीरियस हालत की वजह क्या है? फ़िलहाल प्रोफेसर उनकी निगरानी में लगे हुए थे और आनन् फानन में कई एक्सरे दुबारा करवा लिए थे।

उन्होंने ये बात मामा जी और मौसा जी से भी कही के "हम अभी सिर्फ जो परेशानी आ रही है उसका इलाज कर रहे हैं मगर इस बेहोशी और इस हालत की जड़ हमे नहीं मिल रही। सब कुछ नार्मल है मगर पता नहीं क्या हुआ है और ऊपर वाले को क्या मंजूर है?"
अब सब कुछ ऊपर वाले पर ही छोड़ कर सब बैठ गए थे। घबराहट और बेचैनी ने दिमाग का चलना भी रोक दिया था। किसी की समझ में नहीं आ रहा था की क्या किया जाये और किसके पास जाएँ?

रात होने लगी थी मगर भूख प्यास से बेखबर दादा जी मौसा जी और मामा जी हॉस्पिटल में ही जमे हुए थे, मोबाइल का तब जमाना नहीं था इसलिए रिश्तेदारों में ये बात धीरे धीरे ही फ़ैल रही थी। रात गहराती जा रही थी घर से आया हुआ खाना जस का तस रखा था मगर किसी का खाने का मन नहीं हो रहा था। फिर दादा जी को घर भेज कर मामा जी और मौसा जी ही केवल हॉस्पिटल में रुके थे और ICU में भर्ती भईया की समय समय की खबर ले रहे थे। भईया की हालत वेसे ही बनी हुयी थी कोई होश नहीं था उन्हें।
रात के करीब एक बजे मामा जी सिगरेट पीने के लिए बाहर गए। वो सिगरेट पीते हुए टहल रहे थे और ये सोच रहे थे के न जाने क्या होने वाला है और क्या हो सकता है?

तभी पीछे से आवाज़ आई, "काका भईया नमस्कार।"
मामा जी ने पीछे मुड़कर देखा और बिना मुस्कुराये जवाब दिया "अरे मन्नी लाल, कैसे हो?"

"हम तो ठीक हैं, आप बताईये इतनी रात को और यहाँ कैसे?" उन्होंने मामा जी से पूछा।
मामा जी ने शुरू से आखिरी तक सारी बात बतायी।

"इतना कुछ हो गया हमे बताया भी नहीं, हम तो यही हैं ड्यूटी पर बस पीछे मुर्दा घर में।" उन्होंने मामा जी परेशानी समझते हुए कहा।

"क्या बताये भईया, सुबह से तो खाने पीने का भी होश नहीं है। घर पर दीदी भी बेहाल पड़ी हैं समझ नहीं आ रहा क्या हो रहा है क्या होगा?" मामा जी ने अपना हमदर्द समझ कर अपना सारा दुःख नम आँखों से उनके सामने रख दिया।

"भईया परेशान न हो, बस ३ घंटे और रुक जाओ सुबेरा होते ही बस हम अपना झोला ले आयें फिर देखते हैं कहीं कोई और बात तो नहीं है।" उन्होंने मामा जी से कहा।
"देखो भईया, जेसा बन पड़े करो। बस ये ठीक हो जाये।" मामा जी ने उनसे नाउम्मीदी से कहा।
उसके बाद थोडा इधर उधर की बात की और वापस आ कर मामा जी भी वहीँ ICU के बाहर बैठ गए।

जस के तस रह कर किसी तरह से दोनों ने वहीँ पर रात गुजार दी। रात भर भईया में कोई बदलाव न देखते हुए डॉक्टरों ने उन्हें ICU से अलग एक वार्ड में स्थानांतरित कर दिया।

सुबह दादा जी और मौसी जी भी आयीं और रोते बिलखते किसी तरह अपने बेटे को देखा और फिर मौसा जी के साथ घर चली गयीं। मामा जी ने दादा जी मन्नी लाल के बारे में बताया और उनकी इज़ाज़त मांगी। उन्होंने अपने बेटे के लिए जिस तंत्र मन्त्र पर कभी विश्वास नहीं करते थे, उसे भी इज़ाज़त देदी। शायद कोई चमत्कार हो जाये और अजय ठीक हो जाये।

मामा जी भी घर गए और जल्दी से जल्दी नहा धो कर वापस आ गए क्योकि उन्हें मन्नी लाल से जो मिलना था। खैर मन्नी लाल को आने में देर हुयी वो ६ बजे की बजाये साढ़े सात बजे आये मगर उनकी आने में देरी को लेकर किसी ने कोई आपत्ति नहीं जताई। मामा जी उनके इंतज़ार में थे और उनके आते ही सीधा उस वार्ड की तरफ बढ़ गए जहाँ भईया को डॉक्टरों ने रखा था।

मामा आराम से जाकर अन्दर दादा जी से बताने लगे की जिनके बारे में बताया था वो आ गए हैं। लेकिन ये क्या वो दरवाज़े के बाहर ही खड़े थे। मामा जी ने उन्हें अन्दर आने का इशारा किया मगर फिर भी वही खड़े रहे अन्दर आने की कोशिश करते और फिर से वहीँ खड़े हो जाते।
ये देख कर मामा जी को अजीब लगा और मामा जी ने जाकर उनसे पूछा "क्या हुआ भईया अन्दर क्यों नहीं आ रहे?"
"काका भईया हम बहुत कोशिश कर रहे हैं लेकिन ये लड़का जिसकी चपेट में है वो इतनी प्रबल शक्ति है के हम खुद को जिस विद्या से बांधे हैं उसके साथ हम इस कमरे में घुस ही नहीं सकते।" उन्होंने ने थोड़ी सी माथे पर चिंता की लकीरों को उभर कर कहा।

मामा जी इस बात से थोडा परेशान हुए और बोले "अब क्या करें भईया? अब कैसे क्या होगा?"


मामा जी इस बात से थोडा परेशान हुए और बोले "अब क्या करें भईया? अब कैसे क्या होगा?"

"थोडा समय दो अभी बतातें हैं क्या करना है और क्या होगा।" उन्होंने खुद पर विश्वास रखते हुए मामा जी से कहा और वार्ड के दरवाज़े पर ही बैठ गए। आने जाने वाले उन्हें देख रहे थे। फिर एक नर्स आयीं और उन्होंने उनके बाहर बैठे रहने का कारण पूछा। उन्होंने बिना झिझक के जवाब दिया "अन्दर आज़ाद साहब बैठे हैं न और हम नौकर आदमी उनके बराबर बैठे अच्छा नहीं लगता।" नर्स ने उन्हें वेसे ही रहने दिया और दुबारा नहीं टोका।

थोड़ी देर तक उन्होंने अपना कुछ धीरे धीरे मंत्र जाप किया और फिर वहीँ बैठे रहे। मामा जी ने उनके पास जाकर पूछा "भईया क्या हुआ कुछ हल नज़र आया?"

"भईया ये शक्ति बहुत विकट है, साढ़े बारह बजे तक अगर ये लड़का बच गया तो फिर ये नहीं मरेगा अपने बुढ़ापे तक। अभी इस शक्ति से हम टक्कर नहीं ले सकते, ये इसका वक़्त चल रहा है जिसमे ये बहुत ज्यादा ताकत वार है। ये हमको अन्दर नहीं घुसने दे रहा है न, हम भी इसे बाहर नहीं निकले देंगे। हम भी यहीं डेरा जमाये रहेंगे देखे कितने खेल दिखता है।" इतना कह कर वो फिर से अपने किसी मंत्र को शांति से पढने लगे। और मामा जी वापस जाकर बैठ गए।

समय दस बज रहे थे अब सबको इंतज़ार था तो सिर्फ साढ़े बारह बजे तक के समय के कटने का। सब अपने अपने तरीके से भगवन से प्रार्थना कर रहे थे। और मन्नी चाचा बाहर वेसे ही बैठे थे कभी अपने थैले से कुछ निकल कर मंत्र पढ़ते तो कभी कोई वस्तु मंत्र पढ़ कर अन्दर वार्ड में फेंक देते।

बेचैनी और बेबसी की वजह से वो ढाई घंटे किसी ढाई दशक जैसे लग रहे थे। दादा जी को डॉक्टरों पर यकीन था मगर मामा जी को मन्नी चाचा पर। क्योकि मामा जी ये बात मान चुके थे के जब डॉक्टर भी परेशान हो जाएँ और सारी रिपोर्ट भी नार्मल हो तो तंत्र मंत्र का सहारा भी बहुत बड़ा योगदान देता है।

बाहर बैठे हुए मन्नी चाचा की बेचैनी देखि जा सकती थी कोई भी ज्ञाता ये देख कर जान सकता था की वहां बैठे आदमी की बैचैनी किसी आम इंसान की बैचैनी से अलग थी। ये बात वहां काम करने वाली एक दक्षिण भारतीय नर्स जान गयीं। वो वार्ड में जाते वक़्त मन्नी चाचा से बोली "अंकल, तुम यहाँ तंत्र मंत्र कर रहा है न हम को ये सब पता हैं।"

"बेटा, अब जान गयी हो तो दुबारा यहाँ मत आना क्योकि कुछ शक्तियां अनजान को माफ़ कर देतीं है। लेकिन जानकार के लिए खतरा बढ़ जाता है।" मन्नी चाचा ने आराम से नर्स को समझाते हुए सच्चाई से अवगत कराया।

वो नर्स ये बात सुनकर डर गयी और दुबारा उस जगह दिखाई नहीं पड़ी। मामाजी और मन्नी चाचा पर मानसिक दबाव बनता जा रहा था एक चूक या लापरवाही अगर होती तो दो दो जाने जाती एक जो पहले से गिरफ्त में थी और दूसरी जो उससे टक्कर ले रही थी।

किसी तरह से तो बारह बजे तक का समय कट गया मौसी जी और मौसा जी खाना लेकर अस्पताल आ चुके थे। लेकिन अब जेसे जेसे उसका प्रबल समय ख़त्म हो रहा था उस शक्ति ने अपना खेल दिखाना शुरू कर दिया। भईया की सांसे ऊपर नीचे होने लगी ऑंखें पलट गयी, उनकी खुल आँखों में सिर्फ सफेदी नज़र आ रही थी आखों की पुतली दिखाई नहीं दे रही थी। हाथ पैर झटके खाने लगे थे। डॉक्टर को बुलाया गया जल्दी से जल्दी तीन चार डॉक्टर और प्रोफेसर अन्दर गए और बाकि सब को बाहर कर दिया गया।

डॉक्टर अपनी पूरी कोशिश में लगे थे और उधर मन्नी चाचा कोई कसर नहीं छोड़ रहे थे। उनके मंत्रोचारण लगातार चल रहे थे। मौसी जी को रो रो कर बुरा हाल हुआ जा रहा था। डॉक्टरों ने भईया के हाथ पैर पकडे हुए थे और एक डॉक्टर उनके सीने को लगता दबा रहा था अपना पूरा जोर लगा कर। तभी अचानक अन्दर से भईया के चिल्लाने की आवाज़ आई "मम्मी! मम्मी!"

ये सुन कर मौसी जी तुरंत वार्ड की तरफ दौड़ पड़ी। मगर मन्नी चाचा ने उन्हें अन्दर जाने से मना कर दिया। लेकिन पुरे चौबीस घंटे बाद भईया की आवाज़ आई थी इसलिए वो अन्दर जाने पर अमादा हो गयीं। मन्नी चाचा ने मामा जी से कह कर उन्हें वहीँ रोक दिए और समझाया के "अगर ये अन्दर चली गयीं, फिर ये लड़का तो बच जायेगा मगर हम इनको नहीं बचा पाएंगे। क्योंकि अन्दर से जो आवाज़ आ रही है वो छलावा है किसी और को अपना शिकार बनाने के लिए तुम्हारे परिवार से। तुम्हारा लड़का तो अभी भी बेहोश है।" मन्नी चाचा के लिए ये परीक्षा की घडी थी।

दूसरी तरफ डॉक्टरों को इस बात से थोड़ी सी आशा नज़र आई और वो अपने पूरे दिल जान से जो हो सकता था कर रहे थे। उन्हें लगा की अगर ये लड़का घर वालो को बुला रहा है तो ये ठीक होने की कगार पर है और इसे कोई मानसिक चोट भी नहीं है। थोड़ी देर तक उनका ये सारा ट्रीटमेंट चलता रहा उसके बाद भईया को आक्सीजन लगा कर बेहोशी में ही छोड़ कर सारे डॉक्टर बाहर आ गए। दादा जी से कहा के "अजय ने अपनी यादाश्त खोयी नहीं है इसका मतलब है के अब दुबारा होश आने तक शायद सब ठीक हो जायेगा। फिलहाल वो जितनी देर सोता है उसे सोने दे बिलकुल भी डिस्टर्ब न होने दें।"

दादा जी ने डॉक्टर का धन्यवाद किया। समय बारह बज कर पच्चीस मिनट हुए थे। अभी पांच मिनट तक मन्नी चाचा की परीक्षा और बाकी थी।

मन्नी चाचा ने किसी को भी ५ मिनट के लिए अन्दर जाने से रोक दिया। अपने थैले से कुछ राख(भस्म) निकली और अन्दर वार्ड में फेंक दी। फिर न जाने किससे वार्ड के अन्दर देखते हुए धीरे धीरे बात कर रहे थे जेसे की अन्दर कोई खड़ा हो। अगले पांच मिनट तक वो कुछ बात सी करते रहे उसके बाद जेसे ही साढ़े बारह बजे के आंकड़े को घडी ने छुआ, उन्होंने वार्ड के अन्दर लपक के कुछ पकड़ा जैसे के कोई साधारण इंसान परेशान करती हुयी मक्खी को पकड़ता है। उसके बाद अपने थैले से कुछ मैले धागे जेसा निकल और मंत्र पढ़ते हुए अपने हाथ पर बाँध लिया। और मामा जी से सबको लेकर अन्दर जाने को कहा और खुद बाहर चले गए और कह दिया के कोई भी मेरे पीछे न आये खासकर इस खानदान का। उन्होंने दादा जी की तरफ इशारा करते हुए कहा।

उनके ये बात सुनने के बाद सब सीधा वार्ड की तरफ दौड़ पड़े। अपने बेसुध बेटे को देखने के लिए। सबके दिल में अब एक आशा थी मगर किसी आशंका ने अभी भी सबके चेहरे के ऊपर छाया डाल रखी थी। सब बैठे सिर्फ भईया के होश में आने का इंतज़ार कर रहे थे।
वहां से निकलने के बाद मन्नी चाचा दुबारा लौट कर अस्पताल नहीं आये मगर उन्होने एक वार्ड के कर्मचारी से खबर भिजवा दी के
वो मामा जी से बाद में मिलेंगे।

शाम तक भईया को होश आ गया और वो एक दम नार्मल हो गए बस थोड़ी सी कमजोरी बता रहे थे। सबको पहचाना भी खाना भी आराम से खाया और जब उनसे ये पूछा गया के उन्हें हुआ किया था तो वो सिर्फ इतना ही कहते की में साइकिल से गिर गया था इसके आगे उन्हें कुछ याद नहीं था। फिर वो घर जाने की जिद करने लगे। शाम तक डॉक्टरों ने कुछ नहीं कहा मगर प्रोफेसर ने घर जाने की इज़ाज़त देदी और कहा की अगर इसे थोड़ी सी भी कोई परेशानी होती है तो इसे तुरंत हॉस्पिटल ले आयें। वरना सिर्फ नियमित चेकअप के लिए ५ दिन तक ले आयें। वेसा ही किया गया और भईया एक हफ्ते के अन्दर एक दम ठीक हो गए।

उधर जब मामा जी मन्नी चाचा के पास पहुंचे तो उन्होंने सारी बातें मामा जी से बताई जो इस प्रकार थी "मेडिकल के मैदान में एक बरगद का पेड़ है यही कोई ढाई सौ साल पुराना। जब ये दोनों भाई सुबह खेलने गए थे तो ये उसके नीचे भी बैठ कर खेले थे। जो उस बरगद पर वास करने वाली शक्ति को पसंद नहीं आया। और ये छोटा लड़का उसी की चपेट में आ गया। वेसे वो शक्ति चाहती तो दोनों को वहीँ पर ख़त्म कर सकती थी मगर दोनों बच्चे हैं इसलिए उसने सिर्फ परेशान किया सबको। इतना ही नहीं वो जिंदगी भर के लिए इसे परेशान करना चाहती थी उसका असर ये होता की ये अपने बुढ़ापे तक या फिर जब तक इसकी जिंदगी है तब तक उसी हाल में बेसुध पड़ा रहता जिन्दा लाश की तरह।"

मामा जी ने पहले अजरज से सुना और फिर एक प्रश्न किया "तो फिर मन्नी भईया इसे काबू कैसे किया?"

उन्होंने इसका भी उत्तर दिया "ये शक्ति यहाँ सब जगह पर घुमती है आज़ाद होकर। कोई इसे यहाँ से न हटा सकता है और न ही इसे पकड़ सकता है। पहले हमने वो उस वार्ड को बाँध दिया जिससे वो बाहर न आ सकी। फिर हमने उसको ये धमकी दी के अगर उसने इस बच्चे को नहीं छोड़ा तो फिर उसे इसी पेड़ पर बाँध देंगे। हमेशा रहना पड़ता उसे कैदी की तरह इसलिए उसने अपनी आज़ादी के लिए अजय को छोड़ दिया।"

मामा जी ने अगला सवाल पेश कर दिया "भईया वो शक्ति आखिर थी कौन सी?"

इस सवाल पर मन्नी चाचा मौन खिंच गए और मामा जी द्वारा बार बार प्रश्न करने पर सिर्फ इतना कहा के "आम इंसान के लिए उसका नाम लेना ठीक नहीं है उसने मुझसे वचन लिया है के मैं उसका अस्तित्व किसी को न बताऊ। मगर सिर्फ इतना जान लो के वो शक्ति बरम के आस पास की थी।"

ये सुन कर मामा जी का गला सुर्ख हो गया और उन्होंने आगे कोई प्रश्न नहीं किया। बस थोड़ी देर वहां रुके और वापस घर चले आये।

मुझे ये घटना मामा जी ने ही बताई थी।मैंने मन्नी चाचा की क्रियाओं के बारे में पुछा तो उन्होंने कहा के मन्नी चाचा ने कभी किसी साथ अपने राज़ नहीं बांटे इसलिए ये बात बताना मुश्किल है। जब मैंने उनसे पुछा के बरम क्या होते हैं तो उन्होंने मुझे सिर्फ इतना बताया के बरगद के पेड़ो का अस्तित्व इन बरम पर ही निर्भर करता है। इसलिए अगर कभी मेरा उस तरफ आना जाना हो तो उस बरगद के पेड़ की जय कर लू, एक शक्ति नहीं एक ढाई सौ साल का बुजुर्ग समझ कर।

आज भी अक्सर आते जाते मुझे वो पेड दिख जाता है तो सिर्फ "जय हो" के सिवा न कोई नाम और न ही कोई और शब्द मन में आता है।

धन्यवाद।

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