Wednesday, July 10, 2013

नरयनी

नाम - नरयनी
पोस्ट - स्वीपर और वार्ड क्लीनर
स्थान - कंबाइंड हॉस्पिटल, कानपुर कैंट।

जब मेरे नाना जी ड्यूटी पर हुआ करते थे कंबाइंड हॉस्पिटल में तब वहां एक नरयनी नाम की जमादारिन हुआ करती थी। उनकी बोली और व्यव्हार अत्यधिक सोम्य था। सबसे प्रेमपूर्वक व्यव्हार करना क्या छोटा क्या बड़ा। सब उनके लिए एक जेसे थे। वो एक स्वीपर थीं फिर भी लोग उनकी बहुत इज्ज़त करते थे। वो वक्त एक तरह से कंबाइनड हॉस्पिटल का सुनेहरा समय था जहाँ सारे कर्मचारी आपस न सिर्फ परिवार की तरह काम करते थे बल्कि घर के लिहाज़ से एक दुसरे के पडोसी भी थे। नरयनी हमारे घर एक सामने वाले एक घर में रहती थीं। अक्सर घर भी आया जाया करती थीं। पडोसी होने के नाते भी उनका व्यव्हार बहुत अच्छा था। उनके पति कहीं बाहर काम करते थे, उनके घर में उनके सास ससुर और एक ननद थीं और उनका एक बेटा था। पूरा आस पड़ोस और हॉस्पिटल सब समय एक दम सही चल रहा था जब तक के उस साल की उस होली ने दस्तक नहीं दी थी, जो बाद में वहां दहशत की वजह बनी।

होली के दिन की बात है उस दिन हॉस्पिटल की तरफ से वरिष्ठ पदाधिकारियों को रम की बोतलें भेंट की गयी थी। जो सेना के अफसरों को विशेष तौर पर दी जाती है XXX रम। लेकिन उस वक़्त के एक अधिकारी को उसका शौक नहीं था तो उसने वो बोतल नरयनी को दे दी। नरयनी को पीने का शौक था लेकिन सिर्फ खास मौकों पर हमेशा नहीं। इसलिए वो यह बोतल पाकर अत्यधिक खुश हुयीं।

नरयनी उस बोतल को लेकर अपने घर आयीं और फिर पीने की तैयारी करने लगीं। उन्होंने सारा अपना कार्यक्रम जमा लिया था होली के पापड़ और कुछ व्यंजनों के साथ वो रम पीना चाहती थीं। उन्होंने अपने पीतल के गिलास में रम डाली और पानी वगेरह कुछ नहीं मिलाया था के तभी किसी ने उनको बाहर से आवाज़ दी और वो वेसे ही अपना गिलास रसोई में खास जगह पर छुपा कर चली गयीं। बाहर से जिसने बुलाया था वो उनके रिश्तेदार थे, जो की होली के उपलक्ष पर उनसे मिलने आये थे। रिश्तेदारों की जिम्मेदारी आते ही उन्हें काम काज में लगना पड़ा। उनके लिए खाना बनाना, सारे सेवा सत्कार करना। इनसब कार्यो को निबटाने और रिश्तेदारों से बातचीत करने में उन्हें शाम हो गयी। शाम को रिश्तेदार जब रुख्सत हुए तब जाकर उन्हें थोडा आराम करने का वक़्त मिला। थोड़े आराम के बाद वह रात के खाने की तैयारी करने लगीं। खाना बनाते वक़्त उनका ध्यान उस रम पर गया वो उन्होंने गिलास उठाया उसमे वो आधा गिलास रम अभी भी वेसे ही रखी थी। उन्होंने सोचा, अब क्या इस रम को फेंका जाये, न अलग से पानी मिलाया न कुछ वो उसे वो पी गयीं। उनकी ननद ने जिज्ञासावश उनसे पूछा की उसमे क्या था। उन्होंने यथावत सब बता दिया। वो बात को इसे ही नार्मल समझ कर टाल दिया गया।

खाना तैयार हो चुका था। सबने खाना खाया और फिर उसके बाद सब सोने चले गए। सुबह उठ कर जब उनकी ननद नरयनी को उठाने गयी तो उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया और फिर जब उन्हें हिलाया गया तो पता चला के वो मर चुकी हैं। ये कब हुआ कैसे हुआ किसी को कुछ पता ही नहीं चला था। बदन नीला पड़ चुका था। सबने सोचा शायद सांप ने काटा है। उन्हें जल्दी जल्दी उठा कर हॉस्पिटल लाया गया, वहां उन्हें डॉक्टरों ने मृत घोषित कर दिया। और ये भी स्पष्ट कर दिया की ये सांप के काटने के लक्षण नहीं बल्कि इन्होने कोई ज़हर खाया है।

मगर ये असंभव था क्योंकि नरयनी जेसी जिंदादिल स्त्री ऐसा नहीं कर सकती थी। ये बात न सिर्फ पूरा स्टाफ बल्कि स्वयं डॉक्टर भी जानते थे। इसलिए उन्होंने घर वालों से पूछा की कल उन्होंने क्या खाया और कोई इसी बात तो नहीं हुयी जिसने उन्हे ऐसा कदम उठाने पर मजबूर किया हो?

जवाब सबका स्पष्ट था उन्होंने अपनी अनभिज्ञता जताई और फिर उनकी ननद ने वो रम वाली बात भी डॉक्टर को बता दी। डॉक्टर ने इस बात को फिर सबके सामने स्पष्ट कर दिया की उनकी मौत वो रम पीने से हुयी है। सब इस बात से हैरान थे के ऐसा कैसे हो सकता है वो रम तो स्वयं डॉक्टर ने उन्हें भेंट की थी और वो भी सेना के अफसरों को भेंट दी जाने वाली ट्रिपल एक्स रम ज़हरीली कैसे हो सकती है। इस पर डॉक्टर ने उन सब को समझाया की अगर किसी भी अल्कोहल को चार से आठ घंटे तक अगर किसी पीतल के बर्तन में रखा जाये तो वो ज़हरीला हो ही जाता है। वो भी इतना ज़हरीला के किसी की जान भी ले ले।

खैर मौत की वजह पता चल चुकी थी इसलिए थाना पुलिस करने का कोई फ़ायदा नहीं था। इसलिए उसी दिन शाम के करीब ४ बजे तक उनका अंतिम संस्कार का कार्यक्रम निश्चित कर दिया गया। सारे रिश्तेदार आते रहे और पूरा इलाका शोकाकुल था। अस्पताल के स्टाफ के बीच भी रोज़ की तरह कोई रौनक नहीं थी। उस स्टाफ की ड्यूटी भी ३ बजे ख़त्म हो गयी उसके बाद पूरा स्टाफ नरयनी की अंतिम यात्रा में थोड़े कदम मिलाने के लिए वहां एकत्र हो गया।

डॉक्टर, कम्पाउण्डर, वार्ड बॉय, क्लीनर, और साथी स्वीपर सभी नरयनी की अंतिम यात्रा में शामिल होने आये थे। एक तरह से उस दिन पूरा अस्पताल ही वहां मौजूद था, क्या आसपास वाले क्या दूर रहने वाले सब वहीँ मौजूद थे।

नरयनी की एक मित्र व सहकर्मचारी वहीँ पर मौजूद थीं स्वीटी आंटी। जो अक्सर अत्यधिक खुशबू वाले इत्र लगाया करती थीं। लोग अस्पताल में भी अक्सर उन्हें उनकी इत्र की महक से जान जाते थे। उस दिन भी वो इसी तरह ड्यूटी पर आयीं थी। और उसके बाद फिर वहां से नरयनी की शव यात्रा में शामिल होने आ गयीं थी। नरयनी के घर के अन्दर सभी बहुत रो रहे थे और बाहर भी कई लोग अपने आंसू नहीं रोक पा रहे थे।

अचानक तभी स्वीटी आंटी बेहोश होकर गिर पड़ीं। स्टाफ वालों का ध्यान नरयनी से हटकर आंटी पर गया और फिर सबने उन्हें उठाया और एक जगह पर ले जाकर लेटा दिया और होश में लाने के लिए उनके चेहरे पर पानी की छींटे मारी। मगर उन्हें कोई होश नहीं आया। वहां मौजूद हॉस्पिटल स्टाफ में से कई लोगो ने जांच की सब नार्मल लगा मगर उन्हें होश नहीं आ रहा था।

आनन् फानन में सब उन्हें उठाकर हॉस्पिटल ले गए वो बेहोश ही रहीं। उस वक़्त मेरे नाना जी हॉस्पिटल में ही थे उनकी ड्यूटी का समय था उस वक़्त, जैसे ही आंटी को वहां के मरीज़ वाली पलंग पर लेटाया गया उन्हें होश आ गया। लेकिन उन्होंने तुरंत मेरे नाना जी देख कर चिल्लाना शुरू कर दिया।

"दुलारे भईया, हम हैं। हमको न लेटाओ यहाँ, हमको सुई लगवाने से बहुत डर लगता है।" वो चिल्लाते चिल्लाते बोली।

मेरे नाना जी का नाम लेते हुए जब वो ये शब्द बोलीं तो उनके बोलने के अंदाज़ से नाना जी और बाकि स्टाफ तुरंत समझ गए की ये तो नरयनी है। मगर सब बहुत हैरान थे इस बात से। क्योकि वहां मौजूद सबका मानना था की किसी की भी जब मृत्यु होती है तो उसकी रूह तेरह दिन बाद भटकती है। लेकिन आज ये बात गलत साबित हो गयी थी। उनके आस पास से सब हट गए सिर्फ मेरे नाना जी और एक व्यक्ति उस वक़्त वहां डटे रहे। वो थोडा बहुत चिल्लायीं मगर उनका स्वाभाव वो नहीं था जेसा की हुआ करता था। अब नरयनी बहुत उखड़ी और गुस्सेल स्वाभाव से बात कर रही थी।

एक पल को रोतीं और दुसरे ही पल हंसती वहां मौजूद लोगो को देख कर फिर अचानक भागने की कोशिश करतीं। स्वीटी आंटी को वहां के लोगो ने पलंग से बाँध दिया और फिर उनके घर वालो को खबर कर दी। डॉक्टर ने उन्हें जबरदस्ती एक नींद का इंजेक्शन दिया जिससे वो थोड़ी देर के लिए शांत हो गयीं। वहां मौजूद कम उम्र के कर्मचारियों की हालत ख़राब हो गयी थी। जो उन्होंने देखा वो अविश्वस्निए था। जिसकी लाश सामने पड़ी हो वो वहीँ पर मौजूद किसी पर भी कैसे सवार हो सकता है? ये सवाल सबके दिमाग में हथोड़े बजा रहा था और दहशत के बादल वो वेसे ही बरसे जा रहे थे उनपर।


डॉक्टर ने ये सोच कर उन्हें नींद का इंजेक्शन दिया था की शायद उन्हें नरयनी की मौत का सदमा पहुंचा होगा, थोड़ा सो लेंगी तो ठीक हो जाएँगी। लेकिन उस इंजेक्शन का असर दस मिनट से ज्यादा नहीं रहा और वो दुबारा होश में आ कर वापस उलटी सीधी बातें करने लगी। डॉक्टर भी इस बात से हैरान हो गए की जो इंजेक्शन किसी भी इंसान को आठ घंटे के लिए सुला सकता है उसका असर दस मिनट में कैसे ख़त्म हो गया?

सारा तमाशा सा चल रहा था और स्टाफ तमाशाबीन बनकर सब देख रहा था। डर की वजह से कुछ लोग तो तुरंत हॉस्पिटल छोड़ कर भाग गए थे। कुछ देर बाद स्वीटी आंटी के घर वाले आ गए, और वो लोग उन्हें वेसी ही हालत में घर ले गए।

उधर दूसरी तरफ नरयनी की लाश का निश्चित समय पर अंतिम संस्कार कर दिया गया। घटना पड़ोस की ही थी इसलिए नाना जी ने घर आ कर हॉस्पिटल में क्या क्या हुआ किसी को कुछ नहीं बताया। डर ने नाना जी के मन में भी कहीं न कहीं घर बना लिया था, सिर्फ इसलिए कहीं नरयनी की रूचि उनके परिवार की तरफ न जाग जाए। खैर वो रात में खाना खाने के बाद सो गए दिन भर की घटना को याद करते करते। उस भ्रम के बारे में सोचते हुए के तेरह दिन से पहले ऐसा कैसे हो गया?।

अगले दिन स्वीटी आंटी हॉस्पिटल नहीं आयीं। सब वजह जानते थे इसलिए किसी ने दुबारा मालूम करने की कोशिश नहीं की।
तीसरे दिन जब आंटी हॉस्पिटल आयीं तो सबने उन्हें इसे घेर लिया जैसे के किसी बड़ी हस्ती को भीड़ घेर लेती है। सब यहीं जानना चाहते थे की उनके साथ ऐसा क्यों हुआ और वो ठीक कैसे हुयीं मगर सबके प्रश्नों की शुरुआत हलचल पूछने से ही शुरू हुयी।

धीरे धीरे सब मुख्य विषय पर आ गए वो सारे सवाल बरसा दिए गए उनपर। उन्होंने बताया की जब वो नरयनी के घर पर सब कुछ होते हुए देख रहीं थी तो उन्हें सड़क की तरफ जो की नरयनी के घर से करीब पंद्रह कदम की दूरी पर है, वहां एक औरत को देखा बिलकुल नरयनी जैसी ही थी मगर उनके साथ एक आदमी और था। उन्होंने इसे सिर्फ चेहरे के मेल का एक संयोग समझा और उस तरफ से ध्यान हटा लिया जब दुबारा उस तरफ देखा तो वहां कोई आदमी नहीं था सिर्फ वो औरत खड़ी वहां पर रो रही थी। उसका चेहरा अब साफ़ दिख रहा था, वो नरयनी जैसी नहीं नरयनी ही थी। जब स्वीटी आंटी गौर से नरयनी को देखती रही तो नरयनी ने रोना बंद कर दिया और बिना कदम हिलाए बढती हुयी सीधा उनके सामने २ कदम दूर खड़ी हो गयी। ये देख कर वो बहुत ही ज्यादा बुरी तरह डर गयीं और उसके बाद उन्हें कुछ नहीं याद के क्या हुआ और उनकी आँख अगले दिन सुबह खुली। उनके शरीर में बहुत कमजोरी लग रही थी इसलिए वो हॉस्पिटल न आ सकीं।

आगे स्टाफ ने उन्हें बताया के उनके बेहोश होने के बाद वहां हॉस्पिटल में क्या क्या हुआ और उन्हें कैसे उनके घर वाले आकर घर ले गए थे। सब आगे की घटना जानने के लिए उत्सुक थे इसलिए उन्होंने आखिरकार पूछ ही लिया के वो कैसे हुयीं? उन्होंने इस बात से अनभिज्ञता ज़ाहिर की मगर वो बताया जितना के उनके पति ने उन्हें बताया था।

वो ये था के जब उन्हें हॉस्पिटल से घर ले जाया जा रहा था तो बिलकुल होश हवास में नहीं थी आंखें बंद थी और न जाने क्या क्या बोले जा रहीं थी। उनके पति उन्हें घर ले जाने के बजाये सीधा चर्च(गिरजाघर) लेकर गए। वहां पर उस चर्च के महंत(father) और ३ नन ने मिलकर कोई क्रिया की थी। जिसमे उन्होंने एक घेर सा बना कर उसके अन्दर उन्हें बैठा दिया था और ३ तरफ से नन और एक तरफ से फादर ने उन्हें घेर रखा था। उसके बाद नरयनी की आत्मा से सवाल जवाब भी किये, जिसमे नरयनी ने बताया की वो स्वीटी के इत्र की खुशबू की तरफ आकर्षित हुयी, इसलिए वो आंटी पर सवार हो गयी थी। उसके बाद नरयनी की रूह को आंटी के शरीर से हटा दिया गया। नरयनी की रूह का क्या हुआ क्या नहीं उन्हें नहीं पता था।

जब स्टाफ वालो ने पूछा के नरयनी के साथ जो आदमी था उसके बारे में फादर ने कुछ बताया तो उन्होंने बताया की अगर वो होश में होती तो फादर से जरुर पूछती मगर नरयनी के साथ कोई आदमी था ये बात सिर्फ उन्हें ही पता थी और उसके बाद उन्हें होश सीधा अगले दिन सुबह आया था।

इसका मतलब साफ़ था की स्वीटी आंटी के ऊपर जो सवार थीं वो नरयनी ही थी मगर उनके साथ जो आदमी दिखा था उसकी कोई छाया तक स्वीटी आंटी पर नहीं पड़ी थी। वरना उसके बारे में भी चर्च के फादर कुछ न कुछ जरुर बताते।

स्वीटी आंटी के साथ घटी ये घटना बहुत तेज़ी से पूरी कॉलोनी में फ़ैल गयी। जो समझदार थे वो समझ सकते थे मगर कुछ लोग अत्यधिक इस घटना से डर चुके थे और डर अक्सर वहम का कारण होता है। इसलिए वहम की वजह से अक्सर लोग ये कहते के उन्होंने नरयनी को देखा है, जो बात सरासर गलत होती थी। वो सिर्फ वहम से डरते थे। क्योंकि पूछे जाने पर की "नरयनी ने कौन से कपडे पहने थे?" लोग अक्सर अपने वहम के जोगे में नरयनी की तस्वीर बयां करते थे। नरयनी को जब स्वीटी आंटी ने देखा था तब वो उस कपडे में नहीं दिखी थी जिसमे वो मरी थी। बल्कि उस कपडे में दिखती थी जो हॉस्पिटल स्टाफ की ड्रेस थी। जिसकी वजह सिर्फ एक अद्भुत सच्चाई थी जिसे मैंने बाद में जाना। और कुछ लोग अक्सर अपने वहम में उसे उसी कपड़ो में देखते जिसमे उसकी मृत्यु हुयी थी, और कुछ लोग अपने वहम की चादर में।

धीरे धीरे इस घटना पर समय की परतें चढ़ती चलीं गयीं। इस घटना की चर्चा और नरयनी का खौफ दोनों धुंधले पड़ने लगे थे। सब लोग आराम से कभी कभार नरयनी की बात करते मगर फिर भूल जाते। सबकी समझ में आ चुका था की नरयनी अब यहाँ नहीं है।

३ साल ७ महीने और २१ दिन बाद

सब कुछ सामान्य चल रहा था। एक दिन की बात है, एक नयी स्वीपर आई थी हॉस्पिटल में काम करने। उसकी उम्र यही कोई पच्चीस या छब्बीस वर्ष रही होगी, उनका नाम रानो था। रोज़ की तरह वो उस दिन भी सामान्य रूप से सुबह हॉस्पिटल पहुँच गयी। रात्रि की शिफ्ट में काम करने वाले स्टाफ का जाने का वक़्त था और आधे से ज्यादा जा भी चुके थे। रानो ने हॉस्पिटल में पहुँच कर अपना कार्य आरंभ किया। वो हॉस्पिटल के पीछे वाले वार्ड में झाड़ू लगा कर उससे अगले वार्ड में झाड़ू लगाने लगीं। बाकि स्वीपर आकर अपना अपना कार्य करते इसलिए वो पहले अपना कार्य निपटाने में लगीं हुयीं थी।

दुसरे वार्ड में झाड़ू लगते लगते उन्हें ऐसा लगा के कोई पिछले वार्ड में झाड़ू लगा रहा है। उन्होंने सोचा लगता है दूसरी स्वीपर भी आ गयीं हैं उन्हें बता देते हैं की उस वार्ड में झाड़ू लग चुकी है अब वो वहां पोछा लगा ले।

ये बताने के लिए वो उस पिछले वार्ड में गयीं। वहां पर जा कर देखा तो एक स्वीपर वहां पर झाड़ू लगा रही थी बिना झुके सिर्फ खड़े खड़े इधर से उधर झाड़ू डोला रही थी उसकी पीठ रानो की तरफ थी। ये देख कर रानो ने सोचा के ये झाड़ू लगा रही है या नाटक कर रही है।

फिर रानो ने खुद ही कहा "बहन जी, यहाँ झाड़ू लग चुकी है। दुसरे वार्ड में जाकर लगा लो।"

मगर रानो को उसने कोई जवाब नहीं दिया।

"बहन जी, ओ बहन जी। यहाँ नहीं दुसरे में लगा लो यहाँ हम साफ़ कर चुके हैं।" रानो ने अपनी बात दोहराते हुए दुबारा उससे कहा।

मगर इस बार भी रानो को कोई जवाब नहीं मिला। फिर उसने पास जाकर ही ये बात कहने की सोची। वो ठीक उस दूसरी स्वीपर के पास कोई दो कदम की दुरी पर रुकी और अपनी बात दोहराई। इस बार उसकी बात उसने सुनी और पीछे मुड़कर रानो को देखा। अगले ही पल रानो की चीख निकल गयी और वो बेहोश हो गयी।

उसकी आवाज़ सुनकर आस पास के मौजूद स्टाफ वाले भाग कर आये। उन्होंने रानो को उठाया और ले जा कर सीधा डॉक्टर के केबिन में लेटा दिया। सुबह के वक़्त हॉस्पिटल में कोई बड़ा डॉक्टर नहीं था, तुरंत डॉक्टर को इस बात की जानकारी दी गयी और उन्हें उनके घर से बुला लिया गया। डॉक्टर हॉस्पिटल आने ही वाले थे इसलिए ५ मिनट के अन्दर ही वहां पहुँच गए, उन्होंने रानो की जांच की और नर्स से बिगो लगाकर ग्लूकोस चढाने को कह दिया। नर्स ने बिना देर किये, सब कुछ वहां हाज़िर कर दिया। जेसे उन्होंने रानो का हाथ पकड़ कर उसपर इंजेक्शन लगाने के लिए स्प्रीट से भीगी रुई लगायी।

वो अचनाक होश में आ गयी और बदले हुए लहज़े में चिल्लाने लगी "नहीं हमारे सुई न लगाओ, हमे सुई लगवाने से डर लगता है।"
इस बात को सुन कर सब हैरान रह गए। वो स्वीपर अभी नयी थी और उसे नरयनी के बारे में कुछ नहीं पता था। मगर आज ये सब देख कर वापस स्वीटी आंटी वाली घटना सबके दिमाग में वापस साफ़ हो गयी। मतलब नरयनी वापस आ चुकी थी। सब डर कर पीछे हट गये और करीब ३ या चार मिनट बाद वो बेहोश हो गयी।

दुबारा से डर ने दस्तक दे दी थी और अब सब इस बात के लिए तैयार थे की पिछली बार जिस तरह से इससे निजात मिली थी, दुबारा से वही तरीका अपनाया जाए। सबने रानो को एक तरफ छोड़ कर उसके घर वालो को बुलवाया और स्वीटी आंटी का इंतज़ार करने लगे। तभी रानो में थोड़ी हरकत होती दिखाई दी, उसके हाथ हिल रहे थे और वो होश में वापस आ रही थी। सब इस बात के लिए खुद को तैयार कर चुके थे की नरयनी का वही खेल दुबारा शुरू हो जायेगा, चिल्लाना और डराना। तभी वहां स्वीटी आंटी आ पहुंची थी, सबने ख़ुशी से उनकी देखा और सबसे पहले यही सवाल पूछा की वे नरयनी से निजात पाने के लिए कौन सी चर्च ले जाई गयीं थी। सबसे पहले वो नरयनी का नाम सुनते ही डर गयीं और फिर सबने उन्हें वहां घटा सारा वाक्या बयां कर दिया और उनसे मदद मांगी। वो मदद करने को तैयार तो थीं मगर उन्होंने बताया की वो फादर जिन्होंने उन्हें बचाया था वो कोई ३ महीने पहले ही चल बसे और वहां मौजूद नान और नए फादर इस तरह के ज्ञान के माहिर नहीं हैं।

अब सबके ऊपर जैसे डर ने की कालिमा छा गयी थी। हर कोई इस बात से डरा हुआ था की अब क्या होगा? उधर रानो को भी होश आ रहा था। सबने मिलकर नरयनी के उस खेल को रानो के घर वालों के आने तक झेलना ही उचित समझा, ऐसे समय में और किया भी क्या जा सकता था?

रानो ने आंखें खोली और सबकी तरफ एक नज़र देखा। सबका चेहरा पीला पड़ गया। मगर वो उठ के खुद को समेट कर पलंग के सिराहने की तरफ डरी हुयी सी बैठ गयीं।

वो कुछ नहीं बोल रही थी या फिर शायद किसी और के पहले बुलाने का इंतज़ार कर रही थीं। सब चुपचाप खड़े ये सब देख रहे थे, तभी मेरे नाना जी अपने निश्चित समयानुसार उस वक़्त ड्यूटी पर पहुंचे। उन्होंने सबको देखा और फिर एक आदमी ने उन्हें एक तरफ ले जाकर सब कुछ जो भी हुआ था बता दिया। मेरे नाना जी सीधा वहां पहुँच गए और वो देखना चाहते थे की वो नरयनी ही है या कोई और क्योकि नरयनी का भ्रम कई लोगो को हो चुका था। लेकिन फिर उन्होंने सोचा की सारे ढंग तो नरयनी वाले ही हैं।

फिर उन्होंने सारी बात एक किनारे करते हुए सीधा रानो को जांचने के लिए आवाज़ दी "रानो! क्या हुआ?"

रानो ने डरते हुए नाना जी की तरफ देखा। नाना जी ने फिर से पूछा "क्या हुआ बेटा?"

वो डरते हुए रोने लगी और बोली "चाचा जी वहां, वार्ड में मैंने किसी को देखा। वो कोई औरत थी बिलकुल हमारे जेसे कपड़ो में और बाल खुले थे उसके। चेहरा काला काला था और बहुत डरावना था।" कहते कहते और ज्यादा तेज़ से रोने लगी थी वो।

"मुझे यहाँ काम नहीं करना, मुझे कहीं और काम दिलवा दीजिये चाचा जी।" रोते रोते वो नाना जी बार बार यही कह रही थी।

उसकी नौकरी भी नाना जी ने ही लगवाई थी इसलिए उसने सारी मन की बात नाना जी से कह दी।सबको ये जानकर बहुत संतुष्टि हुयी की अब उसके ऊपर नरयनी की कोई आमद नहीं थी। मगर एक बात निश्चित हो चुकी थी की जिसको रानो ने देखा वो नरयनी ही थी। क्योंकि उसको आये अभी कुछ ही महीने हुए थे, और वो नरयनी से जुडी बातों से बिलकुल अनजान थी। और किसी को भी सुबह के वक़्त और पहली ही बार में इतना बड़ा भ्रम नहीं हो सकता। वो जो भी कह रही थी सच था क्योंकि कोई इतनी आसानी से अपनी नौकरी क्यों छोड़ना चाहेगा?

अब रानो के घर वाले आ चुके थे और वो रानो की बात सुनकर रानो को अपने साथ ले गए। यहाँ हॉस्पिटल में डर का माहोल अपनी बाहें पसार रहा था। सबको कड़ी हिदायत दी गयी की इस बारे में कोई किसी भी मरीज़ या फिर दुसरे शिफ्ट के स्टाफ के किसी भी व्यक्ति से कोई बात नहीं करेगा।

वो दिन किसी तरह सबने बिता दिया, मगर किसी की भी समझ से बाहर था की नरयनी वहां आई क्यों थी? सिर्फ डराने के लिए या फिर मौजूदगी का एहसास दिलाने के लिए? ऐसी ही उधेड़ बुन में पड़ा पूरा स्टाफ परेशान था। अगले दिन जब स्टाफ के लोग वापस काम पर हॉस्पिटल आये तो कोई भी खाली कमरे में अकेला जाने से डर रहा था। स्टाफ का हर व्यक्ति किसी न किसी के साथ ही अपना अपना काम कर रहा था। आने वाले मरीज़ इस बात से बेखबर थे और वो आराम से आ जा रहे थे।

कोई दो दिन ही बीते थे इस बात को। तीसरे दिन की सुबह हमारे पडोसी नाना जी के पास आये। उन्होंने नाना जी को अकेले में ले जा कर बात की। उन्होंने बताया की कल रात उन्होंने नरयनी को देखा। नरयनी उनके घर के बगल ही रहा करती थी मृत्यु से पहले। उन्होंने बताया की कल रात जब बाहर आँगन में चारपाई डाल कर सो रहे थे तभी अचानक आवाज़ आई "चच्चा! ओ चच्चा।"

जब उन्होंने पलट कर देखा तो वहां नरयनी खड़ी थी अपने हॉस्पिटल की यूनिफार्म में और अपने ही अंदाज़ में उन्हें बुला रही थी।

"चच्चा! अन्दर आने दो ना।" वो घर के बाहर बंधे तारों के बाहर खड़ी थी। और उन्हें आवाज़ पर आवाज़ दिए जा रही थी। उनके घर में नरयनी की आवाज़ के सबने सुना और सबने डर सहम कर एक ही कमरे में जागते हुए रात बितायी। उसने पूरी रात में कई बार उन्हें बुलाया और दिखाई भी दी। लेकिन वो बहुत पहले ही नरयनी की मृत्यु के समय ही अपने घर का कीलन करवा चुके थे शायद इसलिए वो घर के अन्दर नहीं आ सकी।

नाना जी ने उनसे पूछा की "वो अपने घर में नहीं गयी?"

उन्होंने बताया की "शायद गयी हो मगर अब तो वहां उसके परिवार का कोई नहीं रहता और वो क्वार्टर भी खाली पड़ा है।" मगर उस घर में उन्होंने नरयनी को नहीं देखा वो बस उनके घर की बाउंडरी की बाहर ही टहल रही थी।

इस बात से मेरे नाना जी भी सोच में पड़ गए, क्योंकि अब नरयनी खतरनाक रूप लेती जा रही थी। यूँ ही खुले आम रात में कई बार आवाज़ देना और दिखाई दे जाना, ये तो वही कर सकता था जिसको पकडे जाने का डर न हो। नाना जी ऐसी कई बातों से अवगत थे, उनकी समझ में ये आया की शायद नरयनी को किसी और शक्ति का संरक्षण प्राप्त है। मगर वो कौन सी हो सकती है ये बताना तो किसी भी आम इंसान के लिए नामुमकिन था।

सारी बातें जो आस पास घट रहीं थी उन्हें नज़र अंदाज़ करना किसी के बस की बात नहीं थी। ये बात नाना जी भी जानते थे इसलिए वो भी चिंतित थे। क्योंकि नानाजी जिस क्वार्टर में रहते थे उसकी अगली लाइन के क्वार्टर में ही ये सब घटनाये चल रही थी। नाना जी इस बात से थोड़े निश्चिंत थे की अभी तक नरयनी का कोई भी साया इस क्वार्टर के लोगो की तरफ नहीं था। शायद उसकी हद उसी लाइन तक ही थी।

वहां सारे क्वार्टर दो मंजिला थे। मतलब एक कर्मचारी अगर नीचे की मंजिल में रहता है तो दूसरा ऊपर की मंजिल में। इसी तरह पूरी कॉलोनी बसी थी। एक दो दिन के अंतराल के बाद एक घटना और घटी। जिन चच्चा को नरयनी आवाज़ देती थी उन्ही के ऊपर के क्वार्टर में मिश्रा जी और पत्नी रहती थी। उस रात बिजली नहीं आ रही थी इसलिए वो दोनों रात को सोने के लिए छत पर चले गए। वो लोग काफी नरयनी की मौजूदगी से अनभिज्ञ नहीं थे मगर वो नरयनी से डरते भी नहीं थे। उस रात को वो लोग छत पर सोये हुए थे। मिश्रा जी को नींद आ चुकी थी मगर उनकी पत्नी तब जाग रही थी। अचानक उन्हें ऐसा लगा की नीचे से कोई रोशनी आ रही है। उन्होंने सोचा की शायद बिजली आ गयी, ये देखने के लिए वो उठी और छत की बाउंड्री के पास जाकर देखा। बिजली आ चुकी थी। उन्होंने मिश्रा जी को उठाया और जाने के लिए आगे बढ़ी और रुक गयीं।

उन्होंने मिश्रा जी को बुलाया वो नीचे देखते हुए कहा "देखिये वहां कोई खड़ा है।"

"रात के 1:30 बजे कौन खड़ा होगा? तुम्हारा वहम होगा। चलो नीचे चलें।" मिश्रा जी ने बात टालते हुए कहा।

"नहीं देखिये तो, कोई औरत है। कहीं कोई चोर वगेरह तो नहीं?" उन्होंने आशंकित होकर कहा।

मिश्रा जी को भी लगा की शायद देखना चाहिए। आखिर इस वक़्त कोई औरत क्या कर रही है यहाँ।

जैसे ही मिश्रा जी उनकी तरफ बढे अचानक तो डरते हुए बोलीं, "अरे ये तो नरयनी है।"

इतना कहते ही वो तुरंत बेहोश हो गयीं। भाग कर मिश्रा जी ने उन्हें उठाया और अपने घर ले गए। वहां उनके ऊपर पानी छिड़का और वो होश में आयीं। मिश्रा जी ने काफी पूछा की क्या हुआ था? कैसे बेहोश हो गयी? मगर उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया। सिर्फ पास रखा एक गिलास पानी पिया और फिर बिना किसी सवाल का जवाब दिए सो गयीं। मिश्रा जी ने समझा के शायद नरयनी का डर है। जिसकी वजह से वो कुछ बोल नहीं पायीं और सो गयीं। वो भी निश्चिन्त होकर सो गए की जो भी होगा सुबह पूछा जायेगा। लेकिन सुबह हुए तो वो उठने का नाम ही नहीं ले रहीं थी। पहले तो मिश्रा जी ने बहुत कोशिश की मगर वो नहीं उठी न ही आंखें खोली।

फिर दौड़ते हुए नाना जी के पास आये क्योंकि नाना जी ने जाकर उन्हें देखा तो बिलकुल बेहोश पड़ी थी। उनके ऊपर काफी पानी वगेरह पहले ही मिश्रा जी डाल चुके थे। मगर उन्हें कोई होश नहीं आ रहा था। मिश्रा जी ने फिर नाना जी को रात को घटी सारी घटना बताई।
नाना जी ने इस बात की पुष्टि के लिए के उनके ऊपर नरयनी ही सवार है एक प्रयोग किया। वो तुरंत घर से एक इंजेक्शन लेके आये। कई लोग नाना जी से घर पर ही दवा वगेरह लेने आते थे इसलिए नाना जी अक्सर ऐसे सामान घर में ही रखते थे। नाना जी फर्जी ही इंजेक्शन लेके ये कहते हुए उनकी तरफ बढ़े की "नरयनी को इंजेक्शन देना पड़ेगा।"

इतना सुनते ही वो तुरंत होश में आ गयीं और वापस अपना वही राग शुरू कर दिया "दुलारे भईया, सुई न लगाना हमे सुई से बहुत डर लगता है।"

इस बात से पुष्टि हो गयी की मिश्रा जी की पत्नी के ऊपर नरयनी का ही साया था और उनके रोने शोर मचाने से आस पास के लोग भी ये जान गए। नरयनी उनपर सवार ही थी, कभी रोती तो कभी हंसती तो कभी आस पास के लोग को मारने दौड़ती। सबकी सांसे थमती जा रही थी। कुछ लोग वापस अपने घर भाग गए और इस तरह से खुद को बंद करके बैठ गए की जैसे वहां रहते ही न हो। नाना जी मिश्रा जी और कुछ लोग वहीँ इस डर का सामना करते हुए ये तय कर रहे थे की क्या किया जाए? हॉस्पिटल ले जाने से कोई फायदा नहीं था क्योंकि ये स्पष्ट था की ये कोई बीमारी नहीं।

तभी अचानक मिश्रा जी की पत्नी शांत हो कर एकदम सीधी लेट गयीं। सबने सोचा शायद नरयनी अब जा रही है। मगर उन्हें नहीं पता था की जो होने वाला है उससे उनकी निडरता की बुनियाद तक हिल जाएगी और डर अपनी जगह बनाने में कामयाब हो जायेगा।
वो सीधी लेटी थी के उनके हाथ पाँव ऐठने लगे जैसे के कोई किसी कपडे को निचोड़ कर पानी निकलता है। वो ऐसे तड़पने लगीं के मानो उन्हें शरीर से जान निकलने वाली हो। उनके हाथ पाँव एक दुसरे की विपरीत दिशा में घूमते जा रहे थे उनके मुंह से फैना आना शुरू हो गया जैसे के किसी सांप ने काट लिया हो। उनकी गर्दन भी ऐठने लगी। और पीछे की और मुड़ती जा रही थी। मिश्रा जी ये सब देख कर बेहोश हो गए और आस पास खड़े लोग भागने लगे, चिल्लाते मदद की गुहार सी लगाते की शायद कोई आकर ये सब ठीक कर सके। नाना जी के हाथ भी काँप रहे थे मगर वो वहां से नहीं गए, क्योंकि हॉस्पिटल में वो कई बार ऐसे तड़पते हुए कुछ लोग को देख चुके थे।
क्या किया जाए क्या नहीं ये तो दिमाग में किसी के था ही नहीं। तभी वो लम्बी लम्बी सांसे लेने लगीं जेसे के बस अब सांसे रुकने वाली हों। नाना जी बताते हैं के उस वक़्त जो डर और दिमाग की स्थिति थी वो आज़ादी की लडाई के वक़्त भी नहीं थी। न जाने कैसे उनके दिमाग में आया और वो जाकर एक बाल्टी पानी लेके आये और मिश्रा जी की पत्नी के ऊपर पूरा पानी उड़ेल दिया। वो एक दम निढाल हो गयीं। उनके ऐठते हुए हाथ पर वापस घूम कर अपनी जगह पर आने लगे और उधर मिश्रा जी को होश आ रहा था। उन्हें होश आया तो वो रोने लगे और पूछने लगे की वो क्या करें? उनका पूरा परिवार भी वहां नहीं था वो अकेले क्या कर लेते?

सबने मिलकर उन्हें धीरज बंधाया और फिर एक सज्जन जो की वहां से गुज़र रहे थे, वो हमारी कॉलोनी के निवासी भी नहीं थे। वो केवल वहां शोर सुनकर आये थे। उन्होंने एक ऐसे ही तांत्रिक की जानकारी मिश्रा जी को दी, और फिर मदद के लिए नाना जी के साथ मिश्रा जी और उनकी पत्नी को वेसे ही बेहोशी की हालत में उस तांत्रिक के पास ले गए।

जहाँ वे लोग गए थे वो तांत्रिक एक प्रसिद्ध मंदिर के पास रहता था। उन्होंने मिश्रा जी की पत्नी को वहां एक कालीन पर लिटा दिया और बाकि सब को आस पास से हट जाने को कहा। उस तांत्रिक ने काफी देर तक कुछ मंत्र पढ़ कर बेहोश पड़ी मिश्रा जी की पत्नी के ऊपर पानी के छींटे मारे उसके बाद कुछ काले तिल, फिर सरसों के बीज। मगर कोई प्रभाव नही हो रहा था। फिर वो ध्यान मुद्रा में बैठ गया और न जाने किसका ध्यान करने लगा। बाकि आये सब लोग बाहर एक चारपाई पर बैठकर कर खिड़की से सब देख रहे थे।

वो ध्यान में ही था के मिश्रा जी की पत्नी को होश आ गया और वो उठ कर बैठ गयी। उसके बाद वो ऐसे किसी से बातें करने लगी के जेसे कोई उनसे सवाल पूछ रहा हो। वो कोई अपना खेल नहीं दिखा रही थी सिर्फ जवाब के अंदाज़ में बोले जा रही थीं। उन्होंने जो जो बोला वो इस प्रकार था-

"नरयनी!"

"घाट के पास कॉलोनी में मेरा घर था।"

"पता नहीं। मैं तो सुबह उठ कर काम पर जाने वाली थी। तभी वहां वो आये और उन्होंने बताया की मैं मर चुकी हूँ।"

"एक बड़ी शक्ति हैं वो। नाम किसी को नहीं बताते वो।"

"मुझे भूख लगी है इसके जरिये ही में कुछ खा सकती हूँ। इसलिए इसका सहारा लिया।"

"कुछ खिला दो चली जाउंगी।"

"मुझे कैद करके क्या मिलेगा? मुझे जाने दो दुबारा अपनी भूख के लिए किसी को प्रेषण नहीं करुँगी।"

"हाँ हाँ। नहीं करुँगी। जब तक कोई मुझे परेशान नहीं करेगा।"

"मेरा भी कोई वक़्त होता है निकलने का अगर कोई उस वक़्त में निकलेगा तो मुझे जरुर देखेगा। मैं कैद होकर नहीं रह सकती।"

"मैं तो निकलूंगी और घुमुंगी भी। जिसको डर लगता है वो न निकले मेरे वक़्त पर।"

"हाँ।" "हाँ।"

"वही मेरा समय है।"

"कुछ भी, थोड़ी सी शराब, और कुछ भी।"

" ठीक है, मगर भूलना मत।"

ये सारी बातें कहने के बाद मिश्रा जी की पत्नी वापस धीरे से लेट गयीं और बेहोश हो गयीं। तांत्रिक ने अपना ध्यान तोड़ा और थोड़ी देर शुन्य में ताकते हुए बैठे रहे। उसके मिश्रा जी और मेरे नाना जी को अन्दर बुलाया और नरयनी के लिए एक बोतल शराब और खाने में कुछ कलेजी के टुकड़ो को रात के ग्यारह बजे से दो बजे के बीच वहां रखवाने को कह दिया जहाँ से वो अक्सर आवाज़ लगाया करती थी। मिश्रा जी मांस मदिरा को हाथ नहीं लगाते थे इसलिए उनके बदले ये काम नाना जी ने किया। और बताये अनुसार ७ दिन तक उस रास्ते से नहीं गुज़रे।

नरयनी का खौफ्फ़ अपने उफान पर था। लोग रात होते ही ग्यारह बजे के बाद घरो से निकलना तो क्या अपने घरो में भी दिखाई नहीं देते थे। नरयनी की आवाज़ सुनना तो आम बात थी लोग वहां सुनते थे और अपने अपने घरों में छुप जाते थे। उस वक़्त वहां कोई ऐसा मजबूत या फिर माहिर आलिम नहीं था जो नरयनी को कैद कर सकता। जिस चर्च के फादर ने उसे कैद किया था उनकी मृत्यु के उपरान्त वो फिर आज़ाद हो गयी थी।

नरयनी का वक़्त था ग्यारह से दो बजे तक। ये बात सब जान चुके थे और जो कॉलोनी छोड़ के जा सकते थे वो चले गए और जिनकी मजबूरी थी वो वहीँ सावधानी से रहते थे।

धीरे धीरे समय के साथ सब शांत होता चला गया। नरयनी फिर भी वहीँ रहा करती थी कभी कभी किसी को दिखती थी मगर जल्दी किसी को परेशान नहीं करती थी। लेकिन जो जो नरयनी के वक़्त में भटका उसे सज़ा भी मिली और समय के साथ ताकतवार होती गयी नरयनी आज भी किसी की पकड़ से बाहर है।

ग्यारह बजे से दो बजे तक का वक़्त आज भी उस लाइन में ख़राब माना जाता है। और जो इस बात को नहीं मानता उसे वो अक्सर किसी न किसी रूप में डर कर मान जाता है। अब नरयनी किसी पर उस तरह सवार होकर तड़पाती नहीं है लेकिन खौफ की वो तस्वीर आज वहां रह रहे बुजुर्गों के दिमाग में बसी है। कभी कभी लोग आज भी उसे देखते हैं मगर वो सिर्फ डरवाती है, कभी बिजली के तारों पर घूमते हुए तो कभी एक पेड़ से दुसरे पेड़ पर टहलते हुए।

मुझे ये सारी घटना मेरे नाना जी ने सुनाई थी। मैं, नाना जी, मेरे बड़े भईया, मामा जी और हमारे गुरु जी, हम सब एकत्र होकर रात में खाना खाने के बाद घर से बहार आँगन में ये सारी बातें कर रहे थे और नाना जी ने ये घटना सुनाई थी। सारी घटना सुनने के बाद मैंने गुरु जी से ऐसे ही पूछ लिया की "गुरु जी, इतने साल हो गए अब तो नरयनी चली गयी होगी न?"

उन्होंने जवाब दिया के "अभी उसे मुक्त होने में बहुत समय बाकी है, वो यहीं है। और हम सब उसकी ही बात कर रहे हैं इसलिए वो हमे ही देख रही है।" ये कह कर वो हमारे आँगन से सामने वाले क्वार्टर की सीढियों की तरफ देखने लगे।

गुरु जी का ये जवाब सुन कर मुझे अजीब सा डर लगा मगर गुरु जी की मौजूदगी से किसी बात का डर नहीं था। मैंने भी उस तरफ नज़र दौडाई जहाँ गुरु जी देख रहे थे, मुझे वहां कुछ दिखाई नहीं दिया सिवाए ३ कुत्तों के जो उस तरफ देख कर भौंके जा रहे थे।

धन्यवाद।

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