Wednesday, July 10, 2013

पहलवान का भोग


नमस्कार दोस्तों,
दोस्तों भूत प्रेत से सम्बंधित घटनाओं में ज्यादातर घटनाये रोंगटे खड़ी कर देती हैं। तो कुछ इतनी मार्मिक होती हैं के दिल भर आता है। लेकिन मेरे जीवन से जुड़ी एक घटना ऐसी भी है जिसे याद करके हंसी आ जाती है। जाने अनजाने में मेरी मम्मी के मामा जी के साथ ये घटना घटी थी। बस थोड़े से आलस की वजह से उनके पीछे ऐसी मुसीबत लगी जिससे उन्हें निजात पाने में सालों लग गए।

वो गाँव में रहा करते थे। उनका नाम तो अच्छा खासा है मगर गाँव में अक्सर चिढ़ाने के लिए जो नाम रख दिया जाता है वो नाम पूरी जिंदगी के लिए पीछे लग जाता है। इसी संक्षिप्तिकरण और मजाक में उनका नाम बचपन में ही लाल जी पड़ गया था। वो इसी नाम से पहचाने जाने लगे।

वो जिस गाँव में रहते थे वो अमेठी से करीब पेंतालिस किलोमीटर दूर पड़ता है। उनका घर गाँव में सबसे किनारे पर था। और उनके घर से करीब ढाई सौ मीटर की दूरी पर रेलवे लाइन थी। और रेलवे लाइन के पार एक बहुत बड़ा बरगद का पेड़ था और चबूतरा बना था, उन्हें लोग पहलवान बाबा के अर्थान (पूजा का स्थान) के नाम से जानते थे। सबको उनपर बहुत श्रद्धा थी, जिसका परिणाम भी उन्हें अच्छे के रूप मिलता था। आस पास के गाँव वाले उनकी पूजा अर्चना करते थे और उनकी कृपा भी खूब देखते थे और आज भी ये सिलसिला वहां जारी है। खैर, वहां वास करने वाले बाबा कोई देवता नहीं थे, वो वही थे जिन्हें लोग शहरो में छलावा कहते हैं। लेकिन एक बहुत लम्बे अंतराल से वो वहां वास करते हैं इसलिए वो बहुत अधिक शक्तिशाली हैं। उनकी पूजा जो करता है वो उस पेड पर लंगोट और दारु की एक बोतल चढ़ाता है। भूतप्रेत बाधा से ग्रस्त व्यक्ति वहां जाकर ठीक हो जाते हैं।

लाल जी भी उन्हें बहुत मानते थे, मगर वे थे थोड़े आलसी किस्म के। जब भी उनकी माता उन्हें उस अर्थान पर चढ़ावा चढाने को कहती तो वे अक्सर टालमटोल करते थे। वहीँ गाँव में एक पंडित जी भी रहते थे, हष्टपुष्ट शरीर वाले और अखाड़ों में उनका बहुत नाम था।

लोग उन्हें अक्सर पहेलवान पंडित कहते थे। हालाकि को थे तो पंडित मगर ये नाम उनके चरित्र को दूर दूर तक नहीं छूता था। पहलवान होने के कारण अक्सर वो मांस मदिरा का सेवन भी करते थे, लेकिन बहुत ही कम। उनके परिवार में उनकी पत्नी और उनका एक दस साल का बेटा था बस। एक बार की बात है उनकी पत्नी बेटे को लेकर अपने मायके गयी हुयी थी और वापस आते समय जिस बस से वे वापस आ रही थी वो बस दुर्घटनाग्रस्त हो गयी। उनके बेटे ने वहीँ दम तोड़ दिया और उनकी पत्नी ३ दिन अस्पताल में जिंदगी और मौत से जूझने के बाद चल बसी। पुरे गाँव में हफ्ते भर तक शोक का साया था, इतनी बड़ी दुर्घटना पहली बार उस गाँव में घटी थी। पहलवान जी के घर लोगो का ताँता लगा रहता, वो अपने होश हवास से खो बैठे थे। आस पास के जानकार और मित्र आकार उन्हें खाना पानी देते, वरना वो खुद खाना पानी भी नहीं लेते थे। हफ्ते भर बाद धीरे धीरे गाँव के लोग अपनी अपनी दिनचर्या में वापस लौटने लगे और उधर पहलवान जी ने जब खुद को संभाला तो शराब और नशे में डूबे रहने लगे और अपने मित्रो और रिश्तेदारों को भी उन्होंने जाने के लिए कह दिया और अकेले रहा करते थे। पुरे दिन पूरी रात वो नशे में डूबे रहते थे।

धीरे धीरे उनका पहलवान वाला शरीर सूखने लगा और एक महीने के अन्दर वो किसी सामान्य व्यक्ति जेसे दिखाई देने लगे मगर किसी का भी कहा नहीं मानते थे और बस अपनी उसी शराब और परिवार की तस्वीर के साथ घंटो बातें करते थे। करीब एक महीने के बाद अचानक सुबह खेत जाते समय एक व्यक्ति ने खबर दी की पहलवान जी ने रेलवे लाइन पर आत्महत्या कर ली। उनका शरीर दो हिस्सों में वहां पड़ा था। गाँव के सारे मर्दों ने उन्हें वही से उठाया और ले जाकर उनका अंतिम संस्कार कर दिया। और सारे गाँव वालो ने थोडा बहुत मिला जुला कर उनकी अंतिम क्रिया भी करवा दी। बहुत बुरा हुआ था मगर सबने ये सोच लिया की ये तो होना ही था आज नहीं तो कल। या तो वो शराब से बिस्तर पर पड़े पड़े मर जाते या फिर जो हुआ वही होना था।

खैर जो हुआ उसे ईश्वर की मर्जी मान कर सबने उनकी संपत्ति पंचायत को गाँव के भले में लगाने के लिए दे दी। उधर कुछ एक महीने के बाद लाल जी की माता जी भी चल बसी। और लाल जी को ये बात अच्छी तरह समझा के गयी थी की हर हफ्ते पहलवान बाबा को भोग देना न भूले। उनकी कृपा रहेगी घर पर तो सदैव घर में हरियाली और समृद्धि रहेगी। ये बात लाल जी अच्छी तरह समझ गए थे और उसका पालन भी करते रहे। हफ्ते में एक दिन वो अर्थान पर जाकर भोग अर्पण करके आते थे। और सबकी तरह ही शराब की बोतल से थोड़ी सी शराब वहां चढ़ा कर बाकि बोतल को प्रसाद के रूप वापस लाकर उसका सेवन करते थे।

करीब छः महीने तक तो उन्होंने इस नियम का पूर्णतया पालन किया। फिर एक दिन वो दुसरे गाँव गए हुए थे किसी परिचित से मिलने वो गाँव उस अर्थान से थोड़ी दूर पर करीब चार सौ मीटर की दुरी पर था, तो उन्होंने देखा की वो व्यक्ति भी पहलवान बाबा को भोग दे रहा था। मगर वो उनके अर्थान पर नहीं गया बस लंगोट और एक कटोरी में शराब रख कर पहलवान बाबा के अर्थान को देखते हुए उसने स्थानीय भाषा में कहा "हे पहलवान बाबा, लो अपना भोग स्वीकार करो।" और फिर शराब को उसी तरफ गिर कर हाथ जोड़ लिए और वापस आकार लाल जी से बात करने लगा। लाल जी ने पूछा की क्या इस तरह से बाबा भोग स्वीकार करते हैं? उसने हाँ में जवाब दिया और बताया की सच्ची श्रद्धा से चढ़ाया गया प्रसाद लेने तो देवता भी धरती पर आ जाते हैं और फिर ये बाबा तो कुछ ही दूर पर निवास करते हैं और अपना भोग स्वीकार भी करते हैं।

लाल जी को ये बात भा गयी, वेसे भी उन्हें रेलवे लाइन पार करके इनती दूर जाना पसंद नहीं था। अब उनका ये सिलसिला शुरू हो गया। वो एक बर्तन में थोड़ी सी शराब और लंगोट लेकर घर के पीछे की तरफ जाते और वहीँ से खड़े होकर जिस तरफ रेलवे लाइन पार पहलवान बाबा का अर्थान था उस तरफ मुंह कर बोलते "पहलवान बाबा भोग स्वीकार करो।" और वहीँ से चढ़ा कर वापस आ जाते थे। हर हफ्ते वो ऐसा करते थे। इस तरह से भोग देते देते उन्हें करीब ६ महीने बीत गए।

एक दिन की बात है पास के गाँव में एक आदमी को प्रेत बाधा हुयी। उसके घर वाले बहुत परेशान थे और वो आदमी पहलवानी कर कर के हर किसी को खुद से दूर रहने की बात कर रहा था। जांघो पर ताल ठोंक ठोंक कर बात कर रहा था। कुछ आदमियों में मिलकर उसे पकड़ने की कोशिश की मगर उसकी पहलवानी के आगे कोई टिक नहीं पा रहा था। किसी तरह गाँव के कई सारे आदमी मिलकर उसके अपने आप शांत होने पर उठा कर उसे पहलवान बाबा के अर्थान पर ले गए। वहां उसे चबूतरे पर बैठाया गया, धीरे धीरे उसने उस पर जैसे दबाव सा बनने लगा और वो वहां मौजूद लोगों ने उससे पूछा की वे कौन है?

उसने बताया की वो वहां रेल की पटरी पर रहता है। ये आदमी वहां पर गन्दगी कर रहा था इसलिए उसे पकड़ा है।

लोगों में में से एक ने पूछा के "माफ़ करदो इसे और जाने का क्या लोगे ये बता दो?"

उसने कहा "दारु। दारु पिला दो छोड़ दूंगा।"

वहां मौजूद लोग तुरंत दारु लेकर आये और उसे दिया। मगर उसने पीने से मना कर दिया। और कहा "ऐसे नहीं, जो मुझे हमेशा देता है बस उससे ही लूँगा।"

जिज्ञासा वश सबने पूछा की वो भोग किस्से लेना चाहेगा। तो उसने बताया की "फलाने गाँव में लाल जी नाम का आदमी है। वो मुझे हमेशा दारु देता है वो देगा तो में तुरंत चला जाऊंगा।"


पहले तो लोगों को शक हुआ की कहीं लाल जी नाम के आदमी ने ही तो नहीं भेजा है इसे तंत्र मंत्र करके। लेकिन इस बात की पुष्टि के लिए समस्या के समाधान के लिए सबने लाल जी से मिलने की ठान ली। कुछ व्यक्ति उस आदमी के घर के सदस्यों के साथ मिलकर जो गाँव उसने बताया था उस तरफ चल पड़े लाल जी से मिलने। जब वो लोग लाल जी के पास पहुंचे तो उन्होंने सबसे पहले ये आज़माया की कहीं इसी आदमी ने तो कोई तंत्र मंत्र नहीं किया। इस बात की पुष्टि के लिए उन्होंने आस पास के लोगो से पूछताछ की सबने बताया की वो तो जल्दी पूजा भी नहीं करता तंत्र मंत्र की तो बात ही दूर है।

इस बात ने सबको सकते में डाल दिया और अब वो लोग लाल जी के पास पहुंचे। और उन्हें सारी घटना से अवगत करवाया। लाल जी पहले से ही भूत प्रेतों के नाम से भागा करते थे, जब उन्हें पता चला की कोई भूत प्रेत उन्हें बुला रहा है तो उन्हें पाँव के नीचे से जमीन सरक गयी। और उन्होंने जाने से साफ़ मना कर दिया। इस बात से वहां मौजूद लोगों को इस बात की तो तसल्ली हो गयी थी की ऐसा आदमी कोई तंत्र मंत्र नहीं कर सकता। फिर उन्होंने लाल जी से साथ चलने और उससे बात करने के लिए कहा। लाल जी किसी भी कीमत पर राज़ी नहीं हो रहे थे। आखिरकार जब उनके बड़े भाई और आस पास के कुछ बुजुर्गो ने उन्हें समझाया तो वो जाने के लिए राज़ी हुए मगर अकेले नहीं, साथ में ४ लोगो को साथ ले गए।

वहां पहुँचने पर लाल जी के पसीने छूटने लगे थे। आखिरकर लाल जी और उसका सामना हो गया।

"कौन हो भाई और क्यों मेरे नाम का शोर करके कर रहे हो ?" लाल जी ने उससे पूछा।

"मुझे बस अपने हाथ हमेशा की तरह दारू पिला दो में चला जाऊंगा।" उस आदमी ने लाल जी के सामने हाथ जोड़ कर कहा। वहां मौजूद ऐसे द्रश्य को सब आंखें फाड़ फाड़ कर देख रहे थे। एक प्रेत कैसे बिना सिद्धि वाले आम आदमी के सामने हाथ जोड़ कर बात कर रहा है।

"हमेशा की तरह? अबे मैंने कब तुझे इससे पहले दारू पिलाया है?" लाल जी अब उससे बिना डरे बात करने लगे थे।

"लाल जी, मजाक न करो। हर हफ्ते मुझे दारू का भोग देते हो उससे मेरी प्यास मिट जाती है। थोड़ी सी दारू देदो चला जाऊंगा।" वो फिर से विनती करने लगा।

अब लाल जी को झल्लाहट होने लगी और वो थोडा तेज़ आवाज़ में बोलने लगे। "अबे क्यों झूठ बोलता है, मैं तो जनता भी नहीं तू कौन है मैं तुझे क्यों दारू देने लगा?"

"हर हफ्ते तो मुझे दारू देते हो, अपने घर के पीछे आकर। और पूछते हो की कब दारू दी?" वो हस्ते हुए बोला। वो लाल जी हर बात ध्यान से सुनता और जवाब देता। और उनके झल्लाने पर हँसता। जेसे की कोई आम आदमी अपने किसी प्रियजन के साथ व्यव्हार करता है।

ये बात सुनकर लाल जी के माथे पर चिंता की लकीरे उभर आयी। ये भोग तो पहलवान बाबा को देते थे, ये भोग इसे कैसे मिलने लगा?
"वो भोग तो ये अर्थान वाले पहलवान बाबा को देता था तू बीच में कहाँ से आ गया?" उन्होंने अपनी परेशानी का हल ढूंढते हुए ये प्रश्न किया।

"तुम्ही तो भोग देते हुए कहते थे पहलवान बाबा भोग स्वीकार करो। अब उनके अर्थान से पहले वहां रेल की पटरी में मैं ही तो रहता हूँ और मैं भी पहलवान ही हूँ। मुझे आदत है तुमसे भोग लेने की।" उसने लाल जी ये सारी बात कही और फिर रोने लगा। और रोते रोते कहने लगा "जबसे वहां हूँ, कभी किसी ने एक गिलास पानी तक नहीं दिया था, बस लाल जी तुमने ही मुझे दारू दिया और मेरी प्यास बुझाई। मैं तो बस तुम्हे ही जनता हूँ।"

ये बात सुनते ही लाल जी और वहां खड़े उनके बड़े भाई की पैरो से जैसे जमीं सरक गयी हो, उनका पहलवान बाबा को दिया जाने वाला भोग कोई पहलवान नाम का प्रेत ले रहा था।

"क्या! तू वो भोग ले रहा था। अर्थान वाले पहलवान बाबा ने तुझे कुछ नहीं कहा?" असमंजस में फंसे लाल जी अपने सरे प्रश्नों के उत्तर जानने में लग गए। उधर उस आदमी का परिवार चाह रहा था की जल्दी से जल्दी ये प्रेत उसका शरीर छोड़ दे और वो ठीक हो जाए।
"बाबा क्या कहेंगे? तुम भोग दे रहे थे मेरा नाम लेकर। और मैं ले रहा था। इसमें न मेरी गलती न तुम्हारी गलती तो बाबा क्यों कुछ कहेंगे? अब तुम जो कुछ भी दोगे वो सबसे आगे वाला ही लेगा न, ७ समंदर पार वाला तो नहीं।" उसने लाल जी के असमंजस के इस प्रश्न का उत्तर दे दिया था वो भी सटीक।

मतलब वो दुसरे गाँव वाले व्यक्ति से भोग अर्थान वाले पहलवान बाबा इसलिए लेते थे क्योकि उनके बीच कोई और पहलवान नहीं था।

लाल जी का दिमाग एक दम से घूम गया, आखिर क्या करो और क्या हो जाता है।

"बाबा कहाँ हैं इस वक़्त इस अर्थान के?" लाल जी ने पूछा।

"यहीं तो हैं, उन्होंने ने मुझे पकड़ रखा है। वहां यहाँ किसकी मजाल के मुझे हरा दे। मुझे बस दारू देदो चला जाऊंगा।" उसने आस पास के लोगो को देखते हुए कहा।

तभी उन व्यक्तियों में से एक व्यक्ति आगे आये और लाल जी कहा की "बेटा, इसको दारु देदो और जाने दो वरना इस आदमी के शरीर को इसकी सवारी तोडती रहेगी और फिर ये महीने भर तक खड़ा भी नहीं हो पायेगा।" बात सत्य थी, किसी पहलवान और बलशाली आत्मा की आमद जब किसी के शरीर पर होती है तो उसके शरीर की शक्ति कम होती चली जाती है।

लाल जी ने अपने प्रश्नों पर विराम लगाया और फिर वहीँ पर पास पड़ी बोतल उठाई और एक ढक्कन दारू लेकर उसके मुंह में डाल दी। और वो व्यक्ति पीते ही नीचे गिरा और बेहोश हो गया। उसके जब होश आया था तो वो ठीक हो चुका था, पहलवान बाबा के अर्थान पर उसने दंडवत प्रणाम किया और धीरे धीरे सब वहां से चले गए और लाल जी भी अपने घर आ गए।

घर पहुँचते ही उनके बड़े भाई ने पहले पूरी घटना और जो कुछ वो करते थे लाल जी से पूछा। उसके बाद अच्छे से उनकी खबर ली, उनके आलस्य के कारण कितने ही वक़्त से पहलवान बाबा को भोग नहीं पहुंचा था और प्रेत तो रीझ गया सो और। अगली बार से लाल जी की जगह उनके बड़े भाई ने अर्थान पर जाकर भोग देने की जिम्मेदारी ली और उसका निर्वाह करने लगे।

करीब एक महीने तक सब कुछ ठीक ठाक चला मगर एक महीने के फिर से एक अजीब सी घटना घट गयी।

एक महीने बाद लाल जी के ही गाँव में शोर हुआ की "पहलवान ने किसी को पकड़ लिया है। बेचारा जिन्दगी से बहुत परेशान था और अब मरने के बाद लोगो को परेशान कर रहा है।"

जिसको पहलवान ने पकड़ा था वो आदमी गाँव के एक चौक पर जा बैठा था। और लोग उसे घेर कर खड़े थे। जब उससे पूछा गया की क्या चाहिए तो उसने साफ़ साफ़ कह दिया के "लाल जी से कह दो दारू पिला दें में चला जाऊंगा।" सब इस बात को जान चुके थे की वो लाल जी के हाथो से दारू क्यों पीना चाहता है? आखिर लाल जी उसके प्रिये जो हो चुके थे। सब उसे पकड़ कर वहीँ अर्थान पर ले जाने की कोशिश करने लगे तो उसने पहलवानी करनी शुरू कर दी। एक व्यक्ति को एक तरफ फेंका तो दुसरे को दूसरी तरफ और
वापस चौक पर पलथी मर कर बैठ गया और कहने लगा "जब तक लाल जी के हाथ से दारू नहीं पी लेता में नहीं जाऊंगा।"

उसकी पहलवानी देख कर किसी की फिर हिम्मत न हुयी की वो उसे पकड़ते। अब शेष सिर्फ एक ही मार्ग था की लाल जी को बुलाया जाए। सबने जाकर लाल जी को बुलाया और लाल जी इस बार तुरंत तैयार हो गए शायद उन्हें कुछ प्रश्नों के उत्तर चाहिए थे।
वो तुरंत जाकर वहां पहुँच गए वो पहलवान उन्हें देख कर इसे खुश हुआ जैसे किसी अपने से वर्षों बाद मिल रहा हो।

"लाल जी आओ, देखो ये लोग मुझे मरने आ रहे थे।" उसने अपना झूठा सा दर्द बयाँ कर लाल जी की सांत्वना पानी चाहि।

"क्यों परेशान कर रहे हो? दारू लेनी है तो और किसी से भी ले लो मुझे क्यों पीड़ित कर रखा है?" लाल जी ने अपने दर्द की वजह उसी को बताते हुए अपना दर्द बयां कर दिया।

"नहीं, तुम्हारे हाथो से मुझे तृप्ति मिलती है।" उसने कहा। तब तक लाल जी ने चोटिल उन दोनों व्यक्तियों को देखा।

"क्यों मारा इन लोगों को? पहलवानी करनी है तो जाकर अखाड़े में करो।" लाल जी ने चोटिल उन लोगो की तरफ से कहा।

"इन लोगो ने मुझे मारा। और लाल जी अखाड़े में जिन्दा लोग जाते हैं। मैं वहां नहीं जा सकता।" उसने समझाने की तर्ज में लाल जी से कहा और लाल जी भी वजह समझ गए थे। वो वजह में यहाँ आप लोगों को नहीं बता सकता।

आस पास वाले कहने लगे की "दारू देकर इसको हटाओ लाल जी। आस पास कोई ओझा तांत्रिक भी नहीं है। तुम्ही इसे हटाओ।" लोगो के कहने पर लाल जी ने उसे थोड़ी सी दारू पिलाई और वो शुक्रिया अदा करके चलता बना।

लाल जी अब और परेशां हो गए। मतलब साफ था "जब भी इसे प्यास लगेगी ये किसी को भी पकड़ लेगा और मुंह खोल कर मेरा नाम लेकर दारू मांगेगा। न जाने कहाँ कहाँ बदनाम करेगा।" इन ही ख्यालों में लाल जी कई दिन तक उलझे रहे और समाधान ढूंढने लगे।
फिर एक दिन किसी दुसरे गाँव में किसी शहर से आने वाले किसी आदमी को उसने पकड़ा और लाल जी का नाम और पता बता कर उनके हाथ से दारू पीने की इच्छा जताई। रात के करीब ग्यारह बजे थे। गाँव में ग्यारह बजे का वक़्त अत्यधिक आधी रात का वक़्त हो जाता है। उस वक़्त पर ही कुछ व्यक्ति लाल जी के घर आये साथ चलने की प्रार्थना करने लगे, यहाँ तक की पैसों की पेशकश तक कर दी। एक तो लाल जी का आलस्य ऊपर से रात का वक़्त दोनों ने पहरे लगा रखे थे मगर इतना परेशान उन लोगो को देख कर वो जाने के लिए राज़ी हो गए।

वहां पहुँचते ही लाल जी को वो देख कर ख़ुशी से बोला "आओ लाल जी।"

लाल जी झल्ला गए और गुस्से में उसकी सेंकने लगे "क्या है बे साले। क्यों दुखी कर रखा है? ना रात देखे न दिन।"

मगर वो फिर भी विनम्रता से बोला "बस तुम्हारे हाथो से दारू चाहिए थी। इतने दिनों से तुम उस तरफ भी नहीं आये तो देखा भी नहीं था।"

"जान लेगा क्या मेरी? नाम बदनाम कर दिया है मेरा और ऊपर से मेरी खुशामती करता है। अगर जिन्दा होता तो में तुझे मार देता।" लाल जी गुस्से में बद्बदाये जा रहे थे।

"जान जाने का दुःख तो मुझे है। तुम मुझे बस दारू पिला दो और जाने दो तुम्हारी उम्र बहुत है उसकी चिंता न करो।" उसने लाल जी के गुस्से का फिर से सरल उत्तर दिया।

लाल जी को कुछ नहीं सूझा उन्होंने उसे दारू देकर विदा कर दिया। और अब उन्होंने कई जगह जाकर कई ओझा तांत्रिक ढूंढे ताबीज वगेरह बनवाई ताकि वो पहलवान परेशान न कर सके। मगर इन सबका कोई ओचित्य नहीं था। क्योकि उसे तो सिर्फ लाल जी से दारू चाहिए थी न की लाल जी को कोई नुक्सान पहुँचाना था। दुआ ताबीज के बावजूद कहीं न कहीं से खबर आती की फला गाँव में फला फला आदमी को किसी ने पकड़ लिया है और वो लाल जी को बुला रहा है।

लाल जी तुरंत समझ जाते और अनमने मन से वहां लोगो के आग्रह पर चले जाते। चार गाली उसको देते चार गाली खुद को और अपने आलस्य को। अगर वो उन दिनों अर्थान पर जाकर भोग देते तो शायद ये मुसीबत कभी उनके पीछे न लगती। कभी बरसात, कभी जलती धूप, कभी रात, कभी सुबह, कभी कहीं तो कभी कही से कोई आ जाता के लाल जी चलो दारू देके उसको बचा लो। उन्हें अपना काम छोड़ कर भी जाना पड़ जाता। लाल जी को ये सब करते हुए करीब एक साल बीत चुका था। अभी तक उन्हें कोई काबिल जानकार नहीं मिला था की वो अपना पीछा छुड़ा पाते, जो मिले भी उन्होंने हाथ डालने से मना कर दिया।

एक बार कहीं से एक जोगी घूमता फिरता न जाने कहाँ से उस गाँव में आ गया। उसने लाल जी के घर का पता पूछा। और लाल जी के घर पहुँच गया। लाल जी ने जब एक अनजान आदमी को देखा तो वो तुरंत तैयार हो गए की फिर से उसी ने किसी को पकड़ा होगा जिससे ये जोगी बुलाने आया है।

"लाल जी आपसे एक बात करनी है। क्या आप मेरे साथ थोड़ी देर के लिए बाहर आएंगे ?" जोगी ने लाल जी से कहा। लाल जी को उनके बड़े भाई को भी थोड़ी हैरानी हुयी के बुलाने नहीं आय सिर्फ बात करने आये हैं। जोगी लाल जी को एक किनारे ले गए।

"मैंने एक पहलवान जेसे आदमी को वहां रेल की पटरी पर देखा है वो मर चुका है। उसने मुझे तुम तक ये सन्देश देने को कहा है की तुम उसे दारू पिलाओ एक निश्चित समय अंतराल पर। क्या तुम जानते हो उसे?" जोगी ने लाल जी से कहा।

इतना कहना की लाल जी ने सारी अपनी व्यथा जोगी को सुना दी और कहा की" शायद ये मेरी भाग्य ही है जो मुझे अपने आलस्य की सज़ा इस कदर मिल रही है।"

जोगी ने सारी बात सुनी और कहा के "मैं तुम्हे इससे निजात दिल सकता हूँ मगर तुम्हे इसके लिए एक दारू की बोतल के साथ मेरे साथ आना होगा वहीँ पर।"

लाल जी को तो जैसे भगवान् मिल गए आखिर किसी ने तो कहा की वो उन्हें निजात दिला सकता है। लाल जी फिर उस जोगी के कहने पर छत से भी कूद जाते। वो इस बात के लिए राज़ी हो गए। लाल जी ने उन्हें अपने घर में ही ठहराया। वो एक विचरण करते जोगी थे। उस वक़्त में इस तरह के साधू अक्सर हुआ करते थे। जो अपना ठिकाना एक जगह नहीं बनाते थे और जन कल्याण में जीवन समर्पित कर देते थे।

वो लाल जी के घर एक दिन रुके और सिर्फ फलाहार किया। रात में उन्होंने लाल जी उस पहलवान के स्थान पर जाकर एक बोतल शराब रख आने को कहा और फिर लाल जी सो जाने के लिए कह कर खुद रात भर जागते रहे और न जाने बिना किसी सामग्री के कौन सी क्रिया करी।

सुबह उठ कर उन्होंने एक डिबिया सी दिखाई लाल जी को उनके बड़े भाई को और कहा के इसे रख लो जब कभी पहलवान से कोई काम करवाना हो तो ये डिबिया खोल कर थोड़ी सी शराब पिला देना, तुम्हारा सारा कहा मानेगा। लेकिन इस डिबिया को कभी खाली मत करना। लेकिन लाल जी और उनके बड़े भाई दोनों ने उसे रखने से मना कर दिया और भेंट स्वरुप जोगी बाबा को नए वस्त्र दिए। जिसे उन्होंने ख़ुशी से स्वीकार किया और अपने रस्ते चल दिए।

लाल जी के लिए तो वो साक्षात् भगवान् का अवतार थे। तब से लाल जी ने निर्णय लिया की आलस्य को दुबारा हावी नहीं होने देंगे। और न ही बिना जाने कहीं भी किसी को भी भोग देंगे।

दोस्तों इस घटना को जानने के बाद ये सीख मिली है कई लोगों को की, कहीं भी किसी के भी नाम से भोग नहीं देना चाहिए। क्योकि हम नहीं जानते की उसे कौन ले रहा है। कई लोग इस तरह से भोग अर्पित करते हैं। याद रखिये हर भोग विधिवत होना चाहिए। यूँ ही बिना जानकारी के सिर्फ नाम लेकर अर्पित किया गया भोग अक्सर दूसरी शक्तियां ही ग्रहण करती हैं और इसकी आदि हो जाती हैं। इसलिए बिना किसी जानकार की सलाह के इसे कार्य बिलकुल न करें।

धन्यवाद।

1 comment: