Sunday, June 30, 2013

घटवार का उपकार

सब कुछ सामान्य था उस दिन।
सावन के महीने में रविवार का दिन था, बारिश नहीं हो रही थी मगर मौसम अच्छा था। कोई आराम कर रहा था तो कोई पड़ोसियों के साथ अपने पुरे हफ्ते के अनुभव की चर्चा कर रहा था।
मैं भी सुबह उठ कर नाश्ता पानी करके टीवी देख रहा था। तभी कॉलोनी में जैसे हाहाकार सा मच गया। पूरा इलाका घर से बहार था, पूरी कॉलोनी में रोने की चिल्लाने की आवाज़ गूंजने लगी थी। मैंने उसी भीड़ में शामिल अपने एक दोस्त इस हंगामे का कारण पूछा तो मेरे भी होश उड़ गए।

हुआ ये था के हमारे करीब कुछ दूर पर एक परिवार रहा करता था, परिवार के मुखिया उपाध्याय जी अच्छे आचरण वाले और सम्रध व्यक्ति थे। उनके चार बेटे थे, रविवार का समय पाकर उपाध्याय जी के ३ बेटे गंगा किनारे अपने 2 दोस्तों के साथ उस सुहाने दिन के मजे लेने गए थे। जाने वहां क्या हुआ क्या घटना घटी ये किसी को नहीं पता था, मगर उन पांचो में से ४ वही डूब गए और सिर्फ एक जो की नदी में उतरा ही नहीं था डरा हुआ वापस आया और उनके घर वालों के घटना की जानकारी दी। जो कुछ भी उसने बताया उस पर विश्वास करना मुश्किल था।

हाँ वहां जो कुछ भी हुआ था उस लड़के के मुताबिक वो चारो डूब चुके थे। पुलिस बुलाई गयी रिपोर्ट हुयी और फिर छानबीन शुरू हुयी। उपाध्याय जी काफी पहुँच वाले आदमी थे इसलिए पुलिस बिना नतीजे के शांत नहीं बैठ सकती थी। पूरे दिन पुलिस ने छानबीन जारी रखी। जिस घाट के पास वो लोग नहाने गए थे उस घाट से २ किलोमीटर दूर तक पुलिस के गोताखोरों ने लाशो को तलाश किया परन्तु उनके हाथ कुछ भी नहीं लगा। पुलिस की नींद उड़ गयी और उधर उपाध्याय परिवार में शोक के साथ एक उम्मीद भी आ गयी के शायद कुछ अनर्थ न हुआ हो।

सब एक आशा के साथ उन लोगो के लौट आने की उम्मीद में कुछ न कुछ प्रयास में लगे हुए थे। पुलिस ने उनके बचे हुए दोस्त को ही हिरासत में लेकर पूछताछ करना शुरू किया। लेकिन पुलिस को उस लड़के ने जो जो बताया वो सेकड़ो लोगो के सामने कल ही बयां कर चुका था।
उसने बताया था के वो पांचो कल सुहाना मौसम देख कर गंगा के **** घाट पर गए थे वहां उन लोगो ने बैठ कर पहले काफी बातें की और फिर उसके बाद घाट से गंगा के किनारे किनारे दूसरी तरफ चल दिए। वहां पर काफी शांति थी इसलिए पांचो ने वहीँ डेरा जमा लिया। फिर उनमे से चारो ने तय किया के इसे कुछ मजा नहीं आ रहा थोड़ी बीअर या शराब होती तो ज्यादा मजा आता। फिर उनमे से एक ने जाकर २ बोतल और कुछ गिलास का इंतजाम कर लिया। लेकिन वो पीता नहीं था इसलिए उसने उन चारो का साथ देने से मन कर दिया। वो शराब पी रहे थे और अपने अपने हफ्ते भर की बातों को कर रहे थे, जैसे जैसे उनकी शराब खत्म हो रही थी वहां का माहोल शांत और शांत होता जा रहा था। कुछ देर में वहां पानी के सिवा पेड़ पाल्लो में भी हलचल होना बंद हो गयी। उसने सोचा शायद आंधी तूफान आने वाला है उसने उन चारो से वापस चलने को कहा मगर वो चारो मिलकर ४ बोतल गटक चुके थे। उन्होंने सोचा अगर इसी हालत में घर गए तो बहुत जूते पड़ेंगे इसलिए सोचा के थोडा सा पानी में नहा लिया जाये ताकि नशा कम हो जाए और फिर अपने अपने घर चलेंगे।

फिर वो सब ही नहाने के लिए वहां बनी सीढियों से उतर कर नहाने के लिए नदी में उतर गए। न जाने फिर क्या कैसे हुआ एक एक कर के चारो उसी में अन्दर चलते चले गए और फिर ऊपर नहीं आये।

उस लड़के का इतना बयां लेकर पुलिस ने उसे जाने दिया और फिर से उस जगह और वहां आस पास फिर से छानबीन की। अभी भी उनके हाथ कुछ नहीं लगा। पुलिस ने सबको सिर्फ इतना बताया की चारो ने शराब पी हुयी थी इसलिए वो तैर नहीं पाए और डूब गए, शराब की भी जांच की गयी मगर वो ब्रांडेड शराब भी उसमे किसी असामान्य तत्व का होना मुश्किल था। मगर पुलिस अभी भी बेचैन थी के वो लोग डूब तो गए मगर लाश कहाँ गयी?

उपाध्याय जी के घर में जो माहोल था उसका थो बखान करना ही मुश्किल है। जिसके ३ बेटे जो मर चुके हो लेकिन उनकी लाश तक न मिली हो ऐसी माँ की क्या हालत होती है ये हर कोई समझ सकता है। वो सुबह होते ही मन्नत मांगने मंदिर जाती, कभी कुछ खाती तो कभी कुछ भी नहीं खाती, कभी रोती तो कभी हंसती तो कभी चिल्लाते हुए बाहर भागने लगती। आज तीसरा दिन था पूरा उपाध्याय परिवार उस दिन कोस ही रहा था और उन तीनो के मिल जाने की मन्नते कर रहा था।

दोपहर के समय एक बाबा हमारी कॉलोनी में आया उस वक़्त उपाध्याय जी और उनका बेटा पुलिस स्टेशन गए हुए थे। माँ जी तो घर में सो रही थी, सोना क्या उसे तो गम की बेहोशी ही कहेंगे, एक दो रिश्तेदार भी घर में थे।

घटना बहुत प्रचलित हो चुकी थी तो साधू ने पूरी घटना का बखान उनके आगे किया और फिर माता जी से कहा की "आपके तीनो बेटे मिल जायेंगे मगर इसकी कीमत लगेगी क्योकि वहां जो भी चीज़ है वो बहुत लालची है उसने ही तुम्हारे बेटो और उसके दोस्त अपने पास रखा हुआ है मगर उनकी जान छुपा ली है उसे धन चाहिए फिर वो उनकी जान वापस उनके शरीर में डाल कर लौटा देगा।"

"कैसी कीमत बाबाजी मैं हर कीमत देने को तैयार हूँ मगर मुझे मेरे बेटे चाहिए" माता जी ने उस बाबा से पूछा।

ये सारी बातें उन दोनों के बीच अकेले में चल रही थी क्योकि बाबा ने ही कहा था के वो ये बातें सिर्फ माता जी से करेगा।

"वो बहुत लालची आत्मा है इसलिए तुम्हारे पास जितना धन है सोना चांदी, लेकर वहीँ गंगा के रेतीले घाट पर आ जाना। मगर आधी रात को अकेले आना के तुम्हारे घर में भी किसी को पता न चले। हम उस आत्मा को उतने धन में ही मनाने की कोशिश करेंगे। और फिर तुम्हारे बेटे तुम्हे वापस मिल जायेगे। अगर तुमने ये बात किसी को घर में बताई तो वो हमारी क्रिया में बाधा डाल देगा और फिर तुम अपने बेटो से हाथ धो बैठोगी। समझ आया ?" बाबा ने माता जी से कहा।

"जी मैं बिलकुल समझ गयी।" आँखों में चमक लिए माता जी ने उस साधू से कहा। उन्हें अब उम्मीद की किरण नज़र आ रही थी।

बहुत मुश्किलों इंतज़ार से उन्होने उस दिन को काटा, और रात को होने वाले चमत्कार की आस में भूखी प्यासी रात का इंतज़ार करती रहीं।

जब रात हुयी तो उन्होंने जल्दी खाना खा कर सोने का नाटक किया। जब उपाध्याय जी भी गहरी नींद में सो गए तो करीब पोने एक बजे वो उठी और पहले से तैयार की हुयी अपने गहनों और रुपयों की पोटली को उठा कर चुपचाप घर से बहार निकल गयी और पहुँच गयी उसी स्थान पर जहाँ उस बाबा ने बताया था। बेटो को पाने की ख़ुशी में इतनी रात में भी उन्हें कोई दर नहीं लगा और सीधा वही पहुँच गयी। वहां वो बाबा थोड़ी सी आग जलाकर और कुछ सिंदूर, निम्बू, सुइयां, काला कपड़ा, थोड़े से चावल और अंडे लेकर बैठा कुछ पूजा पाठ जैसा कर रहा था।

"मैं ले आई हूँ बाबा सारा धन, कृपया जल्दी से मुझे मेरे बेटो से मिलवा दो।" माता जी ने उस बाबा से कहा।

"ठीक है माता वो सारा धन लेकर आप वहां बैठ जाओ।" उसने माता जी को एक तरफ बैठने को कहा।

फिर उसने सिंदूर से माता जी के चारो तरफ एक गोल वृत बना कर धन काले कपडे में रखने को कहा। उन्होंने वैसा ही किया।

फिर उसने कहा की "माता मैं ये निम्बू काटूँगा अगर इसमें से खून निकला तो मतलब आपके बेटे जिन्दा बचाए जा सकते हैं।"फिर उसने एक एक करके चार निम्बू काटे चारो में से खून निकला। माता जी सब कुछ शांत बैठी देख रही थीं।

"माता जी आपके चारो बेटो की जान सुरक्षित है अब ये धन आप इस वृत से बाहर रख दीजिये और मन ही मन ये कहिये के यहाँ जो भी शक्ति वास करती हो, मेरे बेटे मुझे देदो। और तब तक आँखें मत खोलना जब तक तुम्हारे बेटे आकर तुम्हे आवाज़ न दें। " बाबा ने माता जी को ये बात समझाई।

भोलीभाली बेटो के मोह में अंधी माताजी ने उस साधू की ये बात मान ली और जैसा उसने कहाँ वैसे ही मन ही मन जाप करने लगी। उन्होंने इस बात का ७ बार ही जाप किया होगा की अचानक उन्हें धम्म से कुछ गिरने की आवाज़ आई। जिससे उनकी ऑंखें खुल गयीं।
साधू बाबा माता जी के सामने हाथ में धन को वो पोटली लिए गिरे पड़े थे और सामने एक लम्बा चौड़ा आदमी खड़ा था, जिसने सफ़ेद रंग की धोती और ऊपर एक सफ़ेद चादर सी ओढ़ राखी थी, बाल कंधे तक थे। देखने में वो किसी पहलवान जैसा दिख रहा था।

"मेरी जगह पर आकर मेरे ही नाम से धन की चोरी करता है वो भी उसका धन जो बैठ कर मेरा ही जाप कर रही है। " उस आदमी ने गरजते हुए उस साधू से कहा।

"माफ़ करदो। मुझे माफ़ करदो मुझसे गलती हो गयी दुबारा ऐसा नहीं होगा।" साधू हाथ जोड़ते हुए विनती करने लगा।

"नहीं! तू यही भीख मांगेगा और मेरी हद में रोज़ सफाई करेगा।" उस आदमी ने उस साधू को डांटते हुए कहा।

"हाँ करूँगा सब करूँगा। मुझे माफ़ करदो मुझे कोई धन नहीं चाहिए, मुझे माफ़ करदो माता मुझे माफ़ करदो। " वो गिडगिडाए जा रहा था। और माता जी की समझ में ये आ चुका था ये साधू उन्हें लूटने आया था मगर ये नहीं समझ आया था की ये आदमी कौन है?

फिर उस आदमी ने उस साधू से वो पोटली छीन ली और फिर उसे माता जी को दिया फिर उस साधू को उठा कर एक तरफ फेक दिया साधू करीब ३ मीटर दूर जा गिरा और बेहोश हो गया।

"कौन हैं आप? और मेरे बेटे कहाँ हैं?" माता जी ने उस बलवान व्यक्ति से प्रश्न किया।

"मैं वही हूँ जिसका अभी तुम जाप कर रही थी, मैंने तुम्हारे बेटो की जान नहीं ली। वो तो खुद शराब के नशे में डूब गए और जहाँ डूबे थे वहां पर सीढियाँ बनी हैं उनकी लाशें उसी सीढियों के नीचे फसी हुयी है इसलिए वो किसी को नहीं मिल सकी।" उस आदमी ने माता जी से कहा।

"मेरे बेटे मुझे लौटा दो, मैं जिंदगी भर आपकी सेवा करुँगी ये सारा धन तुम रख लो।" माता जी ने रोते हुए उस व्यक्ति से हाथ जोड़ कर विनती करी।

"मुझे धन का कोई लोभ नहीं है माता, और तुम्हारे बेटो की मृत्यु हो चुकी है वो भी उनकी ही गलती से अब वो वापस नहीं आ सकते। आप इस सत्य को अपना लो माता और अपने धन के साथ परिवार में वापस लौट जाओ।" उस व्यक्ति ने माता जी से समझाते हुए कहा।

माता जी फूट फूट के रोने लगी उनकी सारी आस ख़त्म हो गयी थी। फिर उस आदमी ने माता जी का आँचल पकड़ा जैसे कोई बच्चा पकड़ता है और उन्हें अपने पीछे आने को कहा।
वो रो रही थी और करीब दस कदम ही चलीं होंगी की वो अपने घर के दरवाज़े के सामने थी। वो हैरान हो गयी और फिर पीछे मुड़ी और उस व्यक्ति से उसका परिचय पूछा।

"मैं वहीँ का घटवार हूँ माता जिसका आप जाप करके मदद के लिए पुकार रही थी, मैं आपके बच्चो की जिंदगी को नहीं लौटा सकता मगर कल तुम्हारे सारे बेटो की लाश वहीँ मिल जाएगी। अब आप अपने बचे हुए परिवार में खुश रहिये।" व्यक्ति ने माता जी से कहा और फिर माता जी अन्दर जाने के लिए कहा।

वो दरवाज़ा खोल के अन्दर गयी और जैसे ही पीछे मुड़ी वहां पर कोई नहीं था। मन ही मन घटवार की जय की और वापस अपनी जगह पर लेट कर रोने लगीं।

सुबह ४ बज रहे थे ,उनके रोने की आवाज़ सुनकर उपाध्याय जी की आँख खुल गयी और फिर उन्होंने माता जी इतनी सुबह सुबह इस विलाप का कारण पूछा।

माता जी ने सारी घटना सच सच बता दी। उपाध्याय जी को पहले विश्वास ही नहीं हुआ फिर उन्होंने बात मान ली जब अगले दिन उनके तीनो बेटो की और उनके दोस्त की लाश बरामद हो गयी।

पुलिस ने लाश की पोस्टमार्टम करवाया, मौत की वजह पानी में डूबना ही साबित हुयी। लाशो का अंतिम संस्कार हो गया और फिर सब कुछ सामान्य होने में ५ साल लग गए। उनका जो एक बेटा बचा था अब उसकी शादी हो चुकी है और घर में सब सामान्य है। उन्होंने घर बदल दिया है, लेकिन आज भी वो किसी भी पूजा में घटवार बाबा की जय कहे बिना पूजा नहीं करतीं।

दोस्तों ये घटना जब हमारी कॉलोनी में घटी थी तभी से में जाना था के घटवार क्या होते हैं? बाकी, घटवार के बारे में मैं आपको पिछली घटना में भी बता चूका हूँ। दोनों ही घटनाओ में इनके दो रूप दिखाई देते हैं।

धन्यवाद ॥।

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