Friday, June 28, 2013

जीवाधारी - खज़ानो के रक्षक

दोस्तों, ये घटना तब की है जब मेरी नानी जी की उम्र १५ - १६ की रही होगी। तब वह उत्तर प्रदेश के सुलतान पुर जिले के एक गाँव में रहती थीं वहीँ उनका मायका है। उस समय में अक्सर बंजारे और नट अपनी टोलियाँ बनाकर घूमा करते थे। ये नट और बंजारे एक स्थान से दुसरे स्थान पर घूमते थे और जहाँ ज्यादा आबादी देखते थे वहां पर अपना मेला लगा कर करतब दिखाया करते थे और पैसे कमाते थे।

ये बंजारे हमेशा अच्छे नहीं होते थे। अक्सर बंजारों और नटों की टोली के रूप में डाकुओ की भी टोली घूमा करती थी। जो दिन में तो मेला लगाते थे मगर रात में लूटपाट किया करते थे। इसलिए अक्सर गाँव के जानकार लोग अपने गाँव के आसपास इस तरह का नटों का मेला नहीं लगने देते थे।

एक बार एक ऐसा ही मेला नानी के गाँव से थोड़ी दूर पर लगा हुआ था। वहां गाँव के बच्चे अक्सर जाने की जिद किया करते थे मगर कोई उन्हें वहां जाने नहीं देता था। इतना ही नहीं गाँव वालो ने बच्चो का खेतों में जाना और दोपहर को बाहर खेलने से मना कर दिया था। बच्चो को ये बात बहुत ख़राब लगती थी मगर बड़ो के आगे बच्चो की कहाँ चलती। इसलिए बच्चे न चाहते हुए भी सिर्फ तभी तक घर के बाहर खेलते थे जब तक कोई न कोई बड़ा उनके साथ रहता था। मेरी नानी ये सब रोज़ देखती थी ऐसा सिलसिला करीब एक महीने तक चला जब तक वहां वो नटों का मेला लगा हुआ था।

नानी को ये बात बहुत अजीब लगती थी के नटों का टोला हो या डाकुओ का आखिर बच्चो के ऊपर ये बंदिश क्यों है? खैर इस बात का जवाब बच्चो को सिर्फ यही मिलता था के ये नट उन्हें पकड़ ले जायेंगे।

करीब एक महीने तक बच्चों पर बंदिश और बड़ो पर डर का साया रहा। इन सब बंदिशों के बावजूद एक दिन सुबह दस बजे के करीब गाँव में काफी शोरशराबा मचा और पता लगा के एक पड़ोस का एक छोटा बच्चा करीब दस साल का एक लड़का घर से बाहर आया था और गायब हो गया। पूरे गाँव में उसे ढूँढा गया मगर कहीं उसका पता नहीं चला। आखिर कार गाँव के हर घर से सरे बड़े मर्द जोर शोर से उस लड़के की तलाश में लग गए। उन्हें शायद आने वाले खतरे का पता था इसलिए। पहले गाँव और खेत का चप्पा चप्पा छान मारा उन लोगों ने जब उस लड़के की गाँव में गैरमोजुदगी निश्चित हो गयी। फिर वहां के सारे मर्द एकत्र हुए और बिना किसी देर के अपने अपने हाशिये, कुल्हाड़ी, कुदाल वगेरह लेकर चल पड़े उस नटों की टोली की तरफ।

उस बच्चे के घर पर रोना पिटना मचा हुआ था। आस पास के सब लोग अपनी अपनी शंकाएं जताते और बच्चे को बार बार ढूंडते। मगर इस का कोई फायदा नहीं हो रहा था। दूसरी तरफ जब मर्दों की टोली उन बंजारों के मेले के पास पहुंचे तो चौंक गए। वहां अब सब खाली था सिर्फ चूल्हों की राख और तम्बू गाड़ने के निशान मौजूद थे। अब सबका शक यकीन में बदल चुका था, बच्चे को कोई और नहीं वो नट ही चुरा के ले गए हैं।

अब गाँव के सारे लोग वहीँ रण निति बनाने लगे की आगे क्या किया जाए। सबने अलग अलग दिशा में जाने का फैसला किया। क्योकि तब यातायात की इतनी सुविधा नहीं थी इसलिए उन बंजारों का बहुत दूर निकलना असंभव था। लेकिन उसने लड़ने का सामर्थ भी सब नहीं रखते थे क्योकि ये अच्छे लड़ाके भी हुआ करते थे। इसलिए रणनीति बनाना जरुरी था। फिर सबने तय किया की हर रस्ते हर दिशा की तरफ कुछ लोग जायेंगे और पता चलते ही सब एकत्र होकर वहां जाकर उस बच्चे की तलाश करेंगे और वो लोग न मिले तो दोपहर तीन बजे से पहले सब अपने गाँव में एकत्र हो जायंगे।

सब लोगो ने एक अलग अलग दिशा पकड़ी और अपनी अपनी राह चल पड़े। ५-५ लोगो का समूह अपनी अपनी राह पर अग्रसर था। पश्चिम की तरफ जाने वाले समूह के आखिर उनके निशान और फिर वो उनका वो टोला मिल गया। उन सबके पास वापस जाकर बाकि लोगो को बुलाने का वक़्त नहीं था। इसलिए वो किसी मौके के तलाश करने लगे और उनके झुण्ड में उस बच्चे को तलाशने लगे। लेकिन वहां उस बच्चे का कोई सुराग नहीं मिला।

फिर उन्होंने ये सोच लिया के शायद बच्चा इनके पास नहीं है वरना ये उसे अचेत अवस्था में ही सही साथ तो रखते। वो आशा खोने ही वाले थे के किस्मत ने उनका साथ दे दिया। और उनकी भीड़ से निकल कर एक आदमी नित्य कर्म के लिए कुछ दूर चला गया। पांचो ने फिर उसी से पूछताछ करने की ठानी। वो पीछे से जाकर उसके ऊपर टूट पड़े और दो लाठी उसके सर पे जमा कर उसे बेहोश कर दिया। फिर एक तांगे पर उसको लाद कर वापस अपने गाँव की और चल पड़े। वो जितनी जल्दी हो सकती थी कर रहे थे। क्योकि उसके साथी उसको ढूंढने जरुर आने वाले थे।

वो लोग उसको लेके आधे घंटे में अपने गाँव पहुँच गए बाकी सब भी वापस आये तो उन लोगो ने उसके सर पर एक मटका ठंडा पानी डाला और उसे होश में लाये। होश में आते ही वो आस पास गाँव वालो को देख कर घबरा गया।

लेकिन बिना मार खाए उसने कुछ नहीं बताया। जब गाँव वाले मिलकर उसको उसकी सहन शक्ति से ज्यादा खुराक देने लगे तो वो जान गया की उसकी जान के लाले पड़ने वाले हैं। फिर उसने बताया की वो बच्चा कहाँ है। उसने जो बताया उससे सबके होश उड़ गए और उसी वक़्त पास के गाँव के सिद्ध तांत्रिक को बुलाने के लिए कुछ लोग निकल पड़े और बाकि उसे लेकर उस दिशा में निकल पड़े जहाँ वो बच्चा था।

उसने बताया की उनकी टोली के सरदार ने उस लड़के को जीवाधारी बनाने के लिए इस्तेमाल किया है। उसकी जान को खतरा है अगर उसे बचाना है तो या तो उनकी टोली के उसी तांत्रिक को बुलाओ जिसने उसे इस्तेमाल किया है या फिर उससे ज्यादा माहिर खिलाड़ी को।

इसलिए गाँव वाले पास के गाँव के सिद्ध तांत्रिक को लाने के लिए निकल पड़े। वो तांत्रिक को लेकर जल्दी से जल्दी आ गए और वहीँ पहुँच गए जहाँ पर वो नट गाँव वालो को लेकर उससे बच्चे का पता बताने ले गया था। उसने एक जगह एक अजीब सा लिखा हुआ पत्थर दिखाया और गाँव वालो से वहां खोदने को कह दिया। गाँव वाले खोदने में लग गए और कुछ लोग रह रह कर उसको मारते जा रहे थे और धमकी दे रहे थे की अगर बच्चे को कुछ हो गया तो उसकी कब्र यहीं बना देंगे। वो तांत्रिक काफी बूढ़े थे, वो भी आ चुके थे और सब कुछ समझ लेने के बाद भी सबके साथ गड्ढे के खुदने का इंतज़ार कर रहे थे। करीब चार फुट खोदने के बाद वहां एक पत्थर की परत आ गयी जो तीन चार पत्थर से मिलकर बनायीं गयी थी और फिर संभाल कर सबने मिलकर उस पत्थर की परत को हटाया। नीचे जो उन लोगो ने देखा उससे उन्हें कोई ख़ुशी नहीं मिली।

नीचे एक कमरा सा बना हुआ था करीब ५ फुट चोडा और ६ फुट लम्बा। उसमे ५ बड़े बड़े घड़े रखे हुए थे पूरे सोने चांदी से भरे हुए और पास में वो बच्चा लेटा हुआ था नए नए कपड़ो में अच्छा खासा तैयार किया हुआ और उसकी सांसे रुक रुक के चल रही थी और पास में एक दीया जल रहा था जिसका तेल ख़त्म हो चुका था और वो बुझने ही वाला था। सबने उस बच्चे को मरा हुआ समझ लिया और उस नट को दुबारा बुरी तरह पीटना शुरू कर दिया।

तभी वो तांत्रिक बाबा आगे आये और दीये की बाती को थोडा बढ़ा दिया। दीये की लो तेज हो गयी और बच्चे ने आखें खोल दी। सबकी ख़ुशी का ठिकाना न रहा मगर बच्चे ने किसी को भी पहचाना नहीं और अनजान की तरह सबका चेहरा देखने लगा।

तांत्रिक बाबा ने सबसे कहा की "ये बच्चा अभी जिन्दा है, लेकिन ये तभी जिन्दा बच सकता है अगर ये मेरी सिद्ध की हुयी जगह पर पहुँच जायेगा। वरना इसे कोई नहीं बचा सकता। इसे लेकर मेरे स्थान पर चलो और सब इस बात का ध्यान रखना के ये दीया न बुझने पाए, इसमें तेल बढ़ा दो और इसकी अच्छे से देख रेख करना जब तक में इसे बुझाने के लिए न कहु।"

फिर कुछ लोग और तांत्रिक बाबा उस बच्चे को तांगे पर लेकर बाबा के स्थान पर पहुँच गए और वहां जो कुछ भी किया वो किसी ने नहीं देखा क्योकि वो क्रिया बाबा ने अकेले में की थी। करीब १ घंटे बाद एक आदमी वहां वापस पहुंचा और उनसे बताया की बाबा ने दीया बुझाने को कह दिया है। दीया बुझा दिया गया और अब वो बच्चा सुरक्षित था। और सबको पहचानने भी लगा था।

उसके बाद जितना भी खजाना वहां मिला था उसके थोड़े से हिस्से से मंदिर बनवाया गया और बाकि गाँव के प्रधान ने गरीबों के बच्चो की शादी और गाँव की भलाई में लगा दिया। उस नट को बचाने उसके साथी नहीं आये गाँव वालो ने उसे १ हफ्ते तक कैद रखा उसके बाद धमकी दे के छोड़ दिया।

दोस्तों ये तो थी वो घटना जो वहां घटी थी लेकिन इसके असली पहलु बाद में उजागर हुए।अगर ये घटना न घटी होती तो शायद आज हम इतना बड़ा रहस्य न जान पाते। वो रहस्य मैं आपको बताता हूँ

"वहां जो नट आये हुए थे असल में वो लुटेरे नट थे, इन नटो का ये काम होता था एक आबादी वाले क्षेत्र से कुछ दूर मेला लगाना और फिर रात को लूटपाट करना और जब ये ज्यादा खजाना इकठ्ठा कर लेते थे। तो ये उसे जमीन में गाड़ देते थे। इनके साथ एक तांत्रिक भी होता था बहुत माहिर तांत्रिक जो अपनी शक्तियों का इस्तेमाल करके ये भी बता दिया करता था खजाना कहाँ कहाँ है! यही तांत्रिक जीवाधारी बनाते हैं, अपने खजानो की रक्षा के लिए।

जीवाधारी बनाने के लिए ये किसी के भी बच्चे को चुरा लिया करते थे क्योकि बड़ो से ये काम करवाना मुश्किल था और बच्चो को बहलाना आसान। ये जिस बच्चे को चुराते थे, ये उसे उसके पसंद की और भी बहुत अच्छी चीजें खिलाते थे ताकि वो ज़रा भी भूखा न हो। फिर उसे नहला धुला कर नए नए कपडे पहनाये जाते थे, पैरो में रंग आँखों में काजल और बालो में खास किस्म का तेल लगा कर उन्हें बैठाया जाता था फिर तांत्रिक अपनी क्रिया करते थे जिसमे वो बच्चा अपनी सुधबुध खो देता था। उस बच्चे को भिन्न भिन्न शक्तियों से सुसज्जित किया जाता था और उसके नाम का दीया उसके बगल जला दिया जाता था। उसके बाद उसके सामने उस कबीले का सरदार आता था और

कहता था "देखो मुझे और अच्छी तरह पहचान लो। ये खज़ाना मेरा है और तुम इसके रक्षक हो जो मेरे सिवा मेरा खजाना लेगा तुम उसको जिन्दा नहीं छोड़ना। मैं वापस आऊंगा और अपना खजाना ले जाऊंगा उसके बाद तुम आज़ाद हो जाओगे। " ऐसी तांत्रिक क्रिया के बाद वो बच्चा उस इंसान को नहीं बल्कि की आत्मा को पहचान लेता है। फिर वो उसे खजाने के साथ उस गड्ढे में दफ़न करके चले जाते थे। जैसे ही हो दीया बुझता था उसकी आत्मा एक अत्यधिक शक्ति शाली शक्ति का रूप ले लेती थी और महीने, साल क्या सदियों तक अगर वो ना आये तो भी खजाने की रक्षा करती हैं। फिर वो इंसान चाहे इस जन्म में आये या फिर किसी और जन्म में ये शक्ति सिर्फ उसकी आत्मा को ही पहचानती है और खज़ाना लेने से नहीं रोकती। अक्सर आपने देखा होगा कभी कभी कहीं किसी को खज़ाना मिल जाता है ये जीवाधारी उनकी आत्मा पहचान कर उन्हें खजाना लेने से नहीं रोकते। "

दोस्तों, ये कर्म निर्दयी होता है लेकिन इसका इस्तेमाल राजा महाराजा भी किया करते थे लेकिन उस समय में इंसान बहुत इमानदार हुआ करते थे जो खुद राजा की खातिर जीवाधारी बनने को तैयार हो जाते थे। आपने देखा होगा के इन जीवाधारीयों को अक्सर कुछ तांत्रिक हरा देते हैं ये केवल उन्ही जीवाधारियों के साथ संभव हो पता है जो बाल अवस्था में ही जीवाधारी बनाये गए हो। लेकिन राजा महाराजा के जीवाधारियों को हराना संभव नहीं होता क्योकि वो अपनी मर्जी से युवा अवस्था में अपना बलिदान देते हैं और बहुत अधिक शक्तिशाली हो जाते हैं। उनकी इमानदारी ही उनकी सबसे बड़ी शक्ति बन जाती हैं।

धन्यवाद।

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