Friday, June 28, 2013

घटवार - गंगा तट के रक्षक

ये बात काफी पुरानी नहीं है ये बात तब की है जब अयोध्या का फैसला आने वाला था ।
कानपुर में दंगो के डर से कानपुर बंद था । हर कोई किसी न किसी तरह से अपनी छुटटी के मजे ले रहा था । मेरे पड़ोस में रहने वाले एक चाचा जी अक्सर अपनी छुट्टी गंगा किनारे व्यतीत करते थे । मछलियों के बड़े शोकीन थे। इसलिए अक्सर छुट्टी के दिन मछलियाँ पकड़ने गंगा किनारे चले जाया करते थे। कभी कम तो कभी ज्यादा मगर मछली पकड़ने में उस्ताद थे। उस दिन उन्होंने अपना दिन का खाना निपटाया और फिर अपनी पत्नी यानी चाची जी से मसाला पीस कर रखने को कहा और चले गए गंगा किनारे मछली पकड़ने । जैसा मेने आप सब को बताया के वो अक्सर मछली पकड़ने जाते थे। लेकिन उस दिन कुछ अलग ही हुअ। वो मछली पकड़ने के लिए अक्सर गंगा बैराज जाया करते थे। लेकिन कानपुर में उस दिन कर्फ़ू जैसा माहोल था , जिसके चलते उन्हें वहां तक जाना उचित नहीं लगा क्युकी कोई भी सवारी मिलना मुश्किल थ।
इसलिए आज वो शुक्ला गंज की तरफ जाने वाले गंगा पुल के नीचे मछली पकड़ने चले गये । दोपहर के कोई ढाई बजे के वक़्त था । वो अपनी ही धुन में मस्त गुनगुनाते हुए मछलियाँ पकड़ने में व्यस्त थे। लेकिन पैंतालिस मिनट के बाद भी एक भी मछली हाथ नहीं लगी । लेकिन हर मछली पकड़ने वाले में सब्र का सैलाब होता है । वो भी सब्र करे हुए मछली पकड़ने की पूरी कोशिश करते जा रहे थे वैसे भी गंगा के किनारे की खूबसूरती इतनी मोहक होती है की वहां बैठने वाले इंसान का दिल कभी भर ही नहीं सकता तो बोर होने की बात ही अलग है। वो भी अपनी ख़ुशी में मग्न अपने काम में लगे पड़े थे।

अचानक उन्हें महसूस हुआ के उनके कांटे में कोई मछली फसी है । उनके मन में ख़ुशी की लहर दौड़ गयी लेकिन अभी पहले उन्हें देखना था के मछली है कितनी बड़ी अगर छोटी हुयी तो कोई फ़ायदा नहीं होगा क्योकी उनके परिवार में ५ लोग है सिर्फ एक छोटी मछली से कोई फ़ायदा न होता । खैर वो अपनी इतनी देर बाद आई पहली सफलता को लेकर ही उत्साहित थे। उन्होंने कांटे की डोर को पकड़ कर बहार खींचना चाहा मगर उन्हें भार ज्यादा लगा और वो उसे खिंच नहीं पाए ।
उन्होंने अपनी उस मछली पकड़ने वाली डोर को एक पत्थर से बांध दिया और पूरा जोर लगा कर उस मछली को बहार निकलने में लग गए । वो काफी जोर लगा रहे थे मगर उसे बहार खिंच नहीं पा रहे थे, एक तरफ उनके मन में बड़ी मछली पकड़ने की ख़ुशी उन्हें हार नहीं मानने दे रही थी और दूसरी तरफ वो मछली जो बहार आने की बजाये जैसे चाचा जी को ही अन्दर खीचना चाहती थी । काफी जोर लगाने के बाद जब चाचा जी ने समझ लिया के ये मछली अब बहार नहीं आ सकती और न ही कोई और वहां था जो चाचा जी की मदद कर सकता , चाचा जी ने उस मछली को छोड़ देने का फैसला किया और एक आखिरी उम्मीद की साथ थोडा सा डोर को ढीला छोर कर फिर एक साथ अपना सारा जोर लगा कर उसे खिंचा । वो मछली बहार आ गयी । ये देख कर उनके चेहरे पर चमक आ गयी वो मछली देखने में करीब ४ फुट की थी और वजन करीब ८ किलो होगा ।

वो कांटे के साथ उछल कर बहार आई थी चाचा जी से करीब ३ मीटर की दूरी पर । चाचा जी अपना सामान वगेरा छोर कर उसके पास ख़ुशी से गए ये सोचते हुए की इतनी बड़ी मछली को अकेले कैसे घर ले जा पाएंगे ? वो उस मछली के पास पहुंचे पहले तो उसे मछली को देख कर दंग रह गये। वो मछली बहुत अजीब किस्म की थी जैसी उन्होंने अपनी जिंदगी में नहीं देखी थी । काली और थोड़े से हरे रंग के दाग से थे उस मछली पर लेकिन सबसे ज्यादा हैरान करने वाली बात जो थी वो ये थी के उस मछली ने अपने मुंह में एक इंसान का सर पकड़ रखा था मानो जैसे के वो उसे खाने वाली थी ।
इस बात से वो बिलकुल भी नहीं डरे क्योकि लाख पाबन्दी के बाद भी कभी कभी गंगा में लाशें देखी जाती हैं । जिन्हें अगर सरकारी कर्मचारियों ने देख लिया वो उसे निकल लेते हैं वरना न जाने कहाँ तक उसका सफ़र जारी रहता होगा , इसी ही लाशो को अक्सर बड़ी मछलियाँ भी खा जाती है। ऐसा ही कोई वाक्या समझ कर चाचा जी को दर नहीं लगा उन्होंने सोचा शायद किसी लाश को खाने की कोशिश की होगी इस मछली ने मगर खा नहीं पायी इसलिए ये सर इसके मुंह में ही फंसा रह गया । वो मछली बिना तड़पे यथावत पड़ी हुयी थी , जो सर उसके मुंह में था उसका पीछे का हिस्सा चाचा जी जो दिख रहा था । मछली की पड़ताल करने के लिए चाचा जी पहले धागा खिंचा ।

दोस्तों जैसा की आप लोग जानते हैं मछली पकड़ने पर काँटा हमेशा उसके मुंह में होता है तभी वो पकड़ में आती है लेकिन इस मछली को वो काँटा उसकी पूँछ में लगा था। आम तौर पर पूँछ पर काँटा लगता नहीं है और अगर लग भी जाए तो मछली उससे आसानी से निकल जाती है चाहे वो कितनी भी छोटी मछली क्यों न हो । और इतनी बड़ी मछली पूँछ पर काँटा लगने के बाद भी पकड़ में आ गयी, ये दूसरी बार था जो उस मछली ने उन्हें हैरान किया था । लेकिन अब वो इनसब बातों को भूल कर बस ये सोचने लगे की इस सर को इसके मुह से निकाल कर इसे घर ले चलते हैं ।
उन्होंने मछली को पलट दिया अब उस मछली के मुंह में फंसे उस सर कर चेहरा चाचा जी की तरफ हो गया । देखने से लगता था की वो किसी ज्यादा उम्र वाले व्यक्ति का सर नहीं था और न ही वो लाश ज्यादा पहले गंगा में फेकी गयी होगी । उस सर का चेहरा सही सलामत था । वो उसे निकलने की कोशिश करने लगे. फिर उन्होंने सोचा के सर को हाथ लगाना ठीक नहीं इसलिए उन्होंने अपने छोटे से थैले से जिसमे वो मछली पकड़ते वक़्त जरुरत का सारा सामान रखते थे , एक छोटा सा चाकू निकाला। उन्होंने सोचा के मछली के मुंह को थोडा सा काट कर फैला दिया जाये तो वो सर बाहर निकल जायेगा जिसे वो वापस गंगा में फेंक कर मछली लेकर चलते बनेंगे । जैसे ही उन्होंने वो चाकू मछली के मुंह पर रखा उस चेहरे ने आंखें खोल कर चाचा जी तरफ देखा। एक पल को दोनों की नज़र मिली फिर चाचा जी को काटो तो खून नहीं ।

ऐसा द्रश्य देख कर चाचा जी की आँखों के आगे अँधेरा छाने लगा और वो झटके से पीछे हटे। और खूब जोरो से चिल्लाते हुए अपना सारा सामान छोड़ कर घर की तरफ दौड़ पड़े । उनके घर से उस गंगा घाट की दूरी कोई एक किलोमीटर है इतनी दुरी उन्होंने दौड़ते हुए ही तये की, वो घर पहुँचते ही घर में गिर कर बेहोश हो गए और वो कपड़ो में ही मल मूत्र त्याग कर चुके थे । उस वक़्त उनके दर की कोई सीमा नहीं थी।
घर में हाहाकार मच गया पडोसी घर में मधुमक्खी के तरह जमा हो गए। किसी को कोई अंदाज़ा नहीं था के उनके साथ क्या हुआ है इसलिए सब ज्यादा परेशान थे । बच्चे बड़े हैं उनके, उन्होंने चाचा जी के कपडे बदले और उन्हें अस्पताल लेकर गए । जहाँ डॉक्टर ने उन्हें कोई सदमा या डर बेहोशी की वजह बताया । ये सुनकर सब हैरान थे के सदमा या दर किस बाद का लगा उन्हें और सब मिलकर केवल उनके होश में आने का इंतज़ार करने लगे । करीब ४ घंटे बाद उन्हें होश आया, खुद को सुरक्षित महसूस करने के बाद उन्होंने थोड़ा राहत की साँस ली । फिर सारा वाक्या उन्होंने अपनी पत्नी और बड़े बेटे को सुना दिया, किसी के लिए भी विश्वास करना मुश्किल लेकिन चाचा जी की हालत उस घटना की सच्चाई को साबित कर रही थी । चाचा अब डर से उभर तो गए थे मगर उन्हें जोरो का बुखार आये जा रहा था । अस्पताल में सारे डॉक्टर पूरी कोशिश में लगे थे मगर बुखार में कोई कमी नहीं आ रही थी । काफी कोशिश के बाद जब उनकी हालत में कोई सुधर नहीं आया तो उनके बड़े बेटे ने तांत्रिक का सहारा लेने का फैसला किया।
ना जाने कहाँ से ढूंढ कर वो एक तांत्रिक को लेकर आया । देखने में वो एक साधारण आदमी लगता था कोई खास बात उसमे दिखाई नहीं देती थी मगर उसके काम अचूक थे । वो सुबह अस्पताल में आया और थोड़ी देर चाचा जी से बात की और फिर चला गया। शाम को वो दुबारा आया और फिर उसने जो बताया वो सच में चौकाने वाला था ।

उसने बताया के चाचा जी जब मछली पकड़ने गए थे तो उस समय वहां उन्हें कोई नहीं मिला था न कोई मछुआरा न कोई नाव वाला मल्लाह। क्योकि सब इस बात को जानते हैं ।
गंगा हो या यमुना या फिर और कोई भी नदी। हर नदी के किनारों पर घटवार होते हैं कोई बहुत सोम्य व्यवहार वाले तो कोई अत्यंत कठोर। ये इन नदी के किनारों के रक्षक होते हैं । जरुरी नहीं एक ही रक्षक हर वक़्त किनारों की रक्षा करता हो ये घटवार भी कई सारे होते हैं हर किसी का वक़्त होता है। दिन के किस पहर किसको रक्षा करनी है एक व्यवस्थित तरह से सब कुछ तय होता है। जो लोग अक्सर डूब कर मरते हैं या अकाल मौत मरते हैं और घाट पर उनका संस्कार किया जाता है , उन सबकी आत्माओ और मल्लाहो के भोग से ये और भी शक्तिशाली हो जाते हैं।
ये एक उन्मुक्त शक्ति होते हैं। कोई तांत्रिक इनसे टकराता नहीं अगर ये किसी पर नाराज़ भी होते हैं तो तांत्रिक केवल इन्हें खुश करके ही इनका साया हटा पाते हैं। अगर किसी पर ज्यादा नाराज़ हो जाये तो उसे अगली साँस लेने का मौका भी न दे और अगर किसी पर खुश हो जाए तो जिंदगी भर उनकी रक्षा करते है। नाव वाले मल्लाह इन्ही की पूजा करते हैं और इनके आशीर्वाद और कृपा के बाद ही वो अपनी नाव नदियों में उतारते हैं जिससे उनकी नाव बड़ी सी बड़ी लहरों से भी बच निकलती हैं। ये अक्सर चिलम, लंगोट, खडाऊ और सफ़ेद मिठाई का भोग लेते हैं। इनकी हद में भूत प्रेत तो क्या देवता भी नहीं आ पाते। हमेशा किसी भी नदी के तट पर नदी में नहाने से पहले घटवार बाबा की जय बोलकर पहले नदी के पैर छूने चाहिए फिर नहाना चाहिए, ऐसा आज भी घाटो पंडित और महंत बताते हैं।
चाचा जी के साथ भी ऐसा ही कुछ हुआ था। जिस वक़्त वो मछली पकड़ने गए थे वो वक़्त वहां के एक शक्तिशाली परन्तु एकांत पसंद घटवार का वक़्त था। वो मछली और वो सर उस घटवार ने तुम्हे सिर्फ डराने और उस वक़्त पर वहां न आने के लिए दिखाया था। उस तांत्रिक ने बताया की वो घटवार उनपर नाराज़ नहीं है । केवल उन्हें डरवाना चाहता था, और उसी डर की वजह से ही उन्हें बुखार आ रहा था । फिर तांत्रिक ने चाचा जी को अस्पताल से छुट्टी लेने की सलाह दी और कुछ भोग के साथ चाचा जी को उसी समय पर जिस वक़्त वो मछली पकड़ने गए थे वहां अकेले जाने को कहा। वहां जाकर वो भोग अर्पण करें और घटवार से क्षमा प्रार्थना करें। चाचा जी इस बात से और भी ज्यादा डर गए थे, मगर ठीक होने के लिए उन्हें ये करना ही था।

अगले दिन चाचा जी उसी समय पर सारा बताया गया सामान लेकर वहां गए और जल्दी जल्दी क्षमा याचना की और तेज़ी से वापस अपने घर को लौट आये बिना पीछे देखे । उसके बाद उनका बुखार भी उतर गया, और उन्होने दुबारा उस समय पर वहां न जाने का निश्चय किया ।
दोस्तों, घटवार बाबा की इस घटना की पुष्टि के लिए मैंने अपने गुरु जी और अपने कुछ जानकारों से पूछताछ की। उन्होंने ने भी इस बात की पुष्टि की और मुझे सुबूत के तौर पर उदहारण भी दिए। जैसे के वहां मोजूद एक पेड़ जिसकी जड़ आधे से ज्यादा जमीन से बहार है और वो पेड़ गिर हुआ प्रतीत होता है । उसकी डाले गंगा नदी के पानी को छूती हुयी हैं, जो कोई भी उसे पहली बार देखता है उसे इस बात का अचम्भा अवश्य होता है के ये पेड़ तो लगभग गिर हुआ है तो फिर हरा कैसे है इसे तो सूख जाना चाहिए। लेकिन वो हरा सिर्फ वहां मौजूद घटवार बाबा की कृपा से है।
घटवार बाबा की कृपा की और भी घटनाएँ प्रचलित हैं जो की किसी बात की पुष्टि की मोहताज नहीं हैं। घटवार दुष्टों को सज़ा भी देते हैं और मजबूरों की मदद भी करते हैं। वो घटनाएँ मैं आपको आगे भी बताऊंगा।

धन्यवाद ।

1 comment: